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षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-पपाच । उसने पकाया। पिपक्षति। वह पकाना चाहता है। पापच्यते। वह पुन:-पुन: पकाता है। जुहोति । वह यज्ञ करता है। अपीपचत् । उसने पकवाया।
सिद्धि-(१) पपाच । पच्+लिट्। पच्+तिम्। पच्+णल्। पच्+पच्+अ । प+पाच्+अ। पपाच।
यहां डुपचष् पाके' (भ्वा०३०) धातु से परोक्षे लिट्' (३।२।११५) से लिट् प्रत्यय, तिपतसझि०' से 'ल' के स्थान में तिप आदेश, 'परस्मैपदानां णलतसस०' (३।४।८२) से तिप के स्थान में णल् आदेश और लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से पच्' धातु के प्रथम एकाच अवयव 'पच्’ को द्वित्व होता है। द्विरुक्त पूर्व पच्' अवयव की इस सूत्र से अभ्यास संज्ञा होती है। ह्रस्व:' (७।४।५९) से अभ्यास को पर्जन्यवत् ह्रस्व, हलादि: शेष:' (७।४।६०) से अभ्यास-संज्ञक पच्’ का आदि हल प्' शेष रहता है। 'अभ्यासे चर्च' (८।४।५४) से प्रकृतिचरां प्रकृतिचरो भवन्ति' से अभ्यास 'प' को चव प्' होता है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से अंग की उपधा को वृद्धि होती है।
(२) पिपक्षति । पच्+सन्। पच्+स । पक्ष । पक्ष्+पक्ष । प+पक्ष । पिपक्ष+लट् । पिपक्ष+तिम् । पिपक्ष+शप्+ति । पिपक्ष+अ+ति। पिपक्षति।
___ यहां 'डुपचष् पाके' (भ्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् सन् प्रत्यय करने पर सन्यडो:' (६।१।९) से सन्नन्त पक्ष' धातु को द्वित्व होकर उसके प्रथम एकाच पक्ष्' अवयव की इस सूत्र से अभ्यास संज्ञा होती है। सन्यत:' (७।४।७९) से अभ्यास के अकार को इकार आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) पापच्यते । पच्+यङ्। पच्+य। पच्य। पच्य+पच्य। पापच्य+लट् । पापच्य+त। पापच्य+शप्+त। पापच्य+अ+ते। पापच्यते।
यहां पूर्वोक्त पच्' धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ् (३।१।२२) से यङ् प्रत्यय करने पर सन्यङो:' (६।१।९) से यङन्त ‘पच्य' धातु को द्वित्व होकर उसके प्रथम एकाच 'पच्य’ अवयव की इस सूत्र से अभ्यास संज्ञा होती है। 'दीर्घोऽकित:' (७।४।८३) से अभ्यास के अकार को दीर्घ होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) जुहोति । हु+लट् । हु+तिप्। हु+शप्+ति। हु+o+ति। हु+हु+o+ति । झु+हु+ति । जु+हु+ति। जु+हो+ति। जुहोति।
यहां हु दानादनयोः, आदाने च इत्येके (जु०प०) धातु से लट् प्रत्यय करने पर जुहोत्यादिभ्यः श्लुः' (२।४।७५) से 'शप्' को इलु होता है। श्लौ' (६।१।१०) से हु धातु को द्वित्व होकर उसके प्रथम एकाच अवयव ह' की इस सूत्र से अभ्यास संज्ञा होती है। कुहोश्चुः' (७।४।६२) से अभ्यास के हकार को चुत्व-चवर्ग झकार और उसे अभ्यासे चर्च' (८।४।५४) से जश्त्व जकार होता है।