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________________ १७४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-अन्त:, उदात्त:, विभक्तिः , असर्वनामस्थानम्, नद्यजादी इति चानुवर्तते। अन्वय:-उदात्तयणो हल्पूर्वाद् नदी, असर्वनामस्थानम् अजादिविभक्तिरन्तोदात्ता। अर्थ:-उदात्तस्य स्थाने यो यण् हल्पूर्वस्तस्माद् उत्तरो नदीसंज्ञकप्रत्ययोऽसर्वनामस्थानमजादिर्विभक्तिश्चान्तोदात्ता भवति। उदा०-(नदी) की, ही, प्रलवित्री, प्रसवित्री (अजादिविभक्ति:) का, हा, प्रलवित्रा। प्रसवित्रा । एते तृजन्ता अन्तोदात्ता:। आर्यभाषा: अर्थ-(उदात्तयण:) उदात्त के स्थान में जो यण् (हत्पूर्वात्) हल्-पूर्ववाला है, उससे उत्तर (नदी) नदी-संज्ञक प्रत्यय और (असर्वनामस्थानम्) सर्वनामस्थान से भिन्न (अजादि:) अजादि (विभक्तिः) विभक्ति (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होती है। __ उदा०-(नदी) की। करनेवाली। हीं। हरनेवाली। प्रलवित्री । काटनेवाली। प्रसवित्री उत्पन्न करनेवाली। (अजादि विभक्ति) का । कर्ता के द्वारा। हर्ता । हर्ता के द्वारा। प्रलवित्रा। काटनेवाले के द्वारा। प्रसवित्रा। उत्पन्न करनेवाले के द्वारा। सिद्धि-(१) की। कर्तृ+डीप् । कर्तर+ई। की+सु। की। यहां कर्तृ' शब्द से 'ऋन्नेभ्यो डी (४।१।५) से स्त्रीलिङ्ग में 'डीप्' प्रत्यय है। कर्तृ' शब्द तृच्-प्रत्ययान्त होने से चितः' (६ ११ ।१५८) से अन्तोदात्त है। इको यणचिं (६।१।७५) से उदात्त 'ऋ' के स्थान में यण (र) आदेश है जो कि हत्पूर्व (त्) है। अत: नदी-संज्ञक 'डीप्' प्रत्यय इस सूत्र से अन्तोदात्त होता है। 'डीप्' प्रत्यय को 'अनुदात्तौ सुप्पितौ' (३।१।४) से अनुदात्त प्राप्त था। (२) हीं। हर्तृ+डीप् । हई। हर्जी+सु । हीं। पूर्ववत् । (३) प्रलवित्री। प्रलवितृ+डीप् । प्रलवित्र+ई। प्रलवित्री+सु। प्रलवित्री। पूर्ववत् । (४) प्रसवित्री । प्रसवितृ+डीप् । प्रसवित्र+ई। प्रसवित्री+सु। प्रसवित्री। पूर्ववत् । (५) कळ । कर्तृ+टा। कर्तृ+आ। का। यहां कर्तृ' शब्द से असर्वनामस्थान, अजादि टा' प्रत्यय है। कर्तृ' शब्द पूर्ववत् अन्तोदात्त है। 'इको यणचिं' (६।१।७५) से उदात्त 'ऋ' के स्थान में यण (र) आदेश है और वह हत्पूर्व (त्) है। अत: इससे उत्तर असर्वनामस्थान अजादि टा' प्रत्यय (विभक्ति) इस सूत्र से अन्तोदात्त होता है। 'अनुदात्तौ सुपितौ' (३।१।४) से अनुदात्त प्राप्त था। ऐसे ही-हळ, प्रलवित्रा, प्रसवित्रा।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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