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________________ १६६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् से 'त्रि' शब्द के स्थान में स्त्रीलिङ्ग में किया तिसृ आदेश भी स्थानिवद्भाव से अन्तोदात्त है । अत: 'उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य' (८।२।४) से उदात्त यण् से उत्त अनुदात्त जस् को स्वरित आदेश प्राप्त था, इस सूत्र से अन्तोदात्त होता है। अन्तोदात्तः (१०) चतुरः शसि । १६४ | प०वि० - चतुरः ६ । १ शसि ७ । १ । अनु०-अन्त:, उदात्त इति चानुवर्तते । अन्वयः - चतुरोऽन्त उदात्त: शसि । अर्थ: :- चतुर् - शब्दस्यान्त उदात्तो भवति, शसि प्रत्यये परतः । उदा०-च॒तुर॑ प॒श्य । आर्यभाषाः अर्थ- (चतुरः ) चतुर् शब्द का (अन्तः) अन्तिम अच् (उदात्तः ) उदात्त होता है ( शसि ) शस् प्रत्यय परे होने पर । उदा०- - चतुरः पश्य । तू चारों को देख । सिद्धि-चतुरः॑। चतुर्+शस्। चतुर्+अस्। चतुरस्। चतुररु। चतुरर् । चतुरः । यहां इस सूत्र से 'चतुर्' शब्द 'शस्' प्रत्यय परे होने पर अन्तोदात्त है। 'अनुदात्तं पदमेकवर्जम्' (६।१।१५३) से शेष पद अनुदात्त तथा 'अनुदात्तौ सुप्पितौ (३ 1१1४) से 'शस्' प्रत्यय भी अनुदात्त होकर 'उदात्तादनुदात्तस्य स्वरित:' ( ८1४ 1६५ ) से स्वरित होता है । 'चतुर्' शब्द 'चतेरुरन्' (उणा० ५1५९ ) से उरन् - प्रत्ययान्त होने से 'ञ्नित्यादिर्नित्यम्' (६ । १ । १९९१) से आद्युदात्त है। इस सूत्र से 'शस्' विषय में अन्तोदात्त किया गया है। अन्तोदात्तः (११) सावेकाचस्तृतीयादिर्विभक्तिः । १६५ | प०वि०-सौ ७ ।१ एकाच: ५ | १ तृतीयादिः १ । १ विभक्तिः १।१। स०-एकोऽच् यस्मिन् स एकाच् तस्मात् - एकाच : ( बहुव्रीहि: ) तृतीया आदिर्यस्याः सा तृतीयादि: ( बहुव्रीहि: ) । अनु०-अन्त:, उदात्त इति चानुवर्तते । अन्वयः-सावेकाचस्तृतीयादिर्विभक्तिरन्तोदात्ता ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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