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________________ षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः १६१ (२) म्लेच्छः। यहां म्लेच्छ अव्यक्ते शब्दे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् । (३) जज: । यहां जजि युद्धे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत्। 'चजो: कु घिण्ण्यतो:' (७।३।५२) से प्राप्त कुत्व इसी निपातन से नहीं होता है। (४) जल्पः । यहां जल्प व्यक्तायां वाचिं' (भ्वा०प०) धातु से व्यधजपोरनुपसर्गे (३।१।६१) से 'अप्' प्रत्यय है। अन्तोदात्त: (४) अनुदात्तस्य च यत्रोदात्तलोपः।१५८। प०वि०-अनुदात्तस्य ६।१ च अव्ययपदम्, यत्र अव्ययपदम् (सप्तम्यर्थे) उदात्तलोप: १।१। स०-उदात्तस्य लोप:-उदात्तलोप: (षष्ठीतत्पुरुषः) । अनु०-अन्त: उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वयः-यत्र-यस्मिन्ननुदात्ते उदात्तलोप:, तस्यानुदात्तस्य चान्तोदात्त:। अर्थ:-यत्र यस्मिन्ननुदात्ते परतोऽनुदात्तस्य लोपो भवति, तस्यानुदात्तस्य चान्तोदात्तो भवति। उदा०-कुमारी। पृथः। पृथा। पथे। कुमुद्वान्। नड्वान् । वेतस्वान्। आर्यभाषा: अर्थ-(यत्र) जिस अनुदात्त के परे होने पर (उदात्तलोप:) उदात्त का लोप होता है (अनुदात्तस्य) उस अनुदात्त को (च) भी (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है। उदा०-कुमारी । अविवाहिता। पृथः । मार्गों को। पृथा। मार्ग के द्वारा। पथे। मार्ग के लिये। कुमुद्वान् । श्वेत कमलवाला । नड्वान् । सरपतवाला। वेतस्वान् । बैंतवाला। सिद्धि-(१) कुमारी । कुमार+डीप्। कुमारई। कुमारी+सु। कुमारी। यहां कुमार शब्द से 'वयसि प्रथमे (४।१।२०) से 'डीप्' प्रत्यय है। यह 'अनुदात्तौ सुप्पितौं' (३।१।४) से अनुदात्त है। उस अनुदात्त के परे होने पर यस्येति च (६।४।१४८) से कुमार' शब्द के उदात्त अकार का लोप होता है। इस सूत्र से जिस अनुदात्त के परे होने पर उदात्त का लोप होता है उस अनुदात्त को अन्तोदात्त होता है अत: डीप् (ई) प्रत्यय अन्तोदात्त हो जाता है। 'कुमार' शब्द फिषोऽन्तोदात्तः' (फिट० ११) से अन्तोदात्त है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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