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________________ ६७ षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः (२) ब्रह्मौदनः । ब्रह्म+ओदनः । ब्रह्म-औ-दनः । ब्रह्मौदनः । यहां ब्रह्म के अ-वर्ण से उत्तर ओदन के एच् (ओ) को इस सूत्र से वृद्धिरूप (औ) एकादेश होता है। ऐसे ही-ब्रह्मौपगवः, खट्वौपगवः । वृद्धिरादैच्' (१।१।१) से तपर आकार, ऐकार, औकार की वृद्धि संज्ञा की है। वृद्धि-एकादेशः (१८) एत्येधत्यूठ्सु।८६| प०वि०-एति-एधति-ऊठसु ७।३ । स०-एतिश्च एधतिश्च ऊम् च ते-एत्येधत्यूठः, तेषु-एत्येधत्यूठसु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। ___ अनु०-संहितायाम्, एकः, पूर्वपरयोः, आत्, वृद्धि:, एचि इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायाम् आद् एत्येधत्यूठसु एचि पूर्वपरयोवृद्धिरेकः । अर्थ:-संहितायां विषयेऽवर्णाद् एति-एधति-ऊठ्सु एचि परत: पूर्वपरयो: स्थाने वृद्धिरूप एकादेशो भवति । उदा०- (एति:) उपैति, उपैषि, उपैमि। (एधति:) उपैधते, प्रैधते। (ऊठ) प्रष्ठौह:, प्रौष्ठोहा, प्रष्ठौहे। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आत्) अ-वर्ण से पर (एत्येधत्यूठ्सु) एति, एधति, ऊठ विषयक (एचि) एच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व पर के स्थान में (वृद्धि:) वृद्धिरूप (एक) एकादेश होता है। उदा०-(एति) उपैति। यह प्राप्त करता है। उपैषि । तू प्राप्त करता है। उपैमि । मैं प्राप्त करता हूं। (एधति) उपैधते। वह बढ़ता है। प्रैधते । वह बढ़ता है। (ऊ) प्रष्ठौह: । आगे ले जानेवालों को। सिद्धि-(१) उपैति । उप+एति। उप्-ऐ-ति। उपैति । यहां उप' के अ-वर्ण से उत्तर एति' के एच् (ए) को इस सूत्र से वृद्धि रूप (ए) एकादेश होता है। ऐसे ही-उपैषि, उपैमि। यह 'एङि पररूपम्' (६।१।९४) का अपवाद है। (२) उपैधते । उप+एधते । उप-ऐ-धते। उपैधते। यहां उप' के अ-वर्ण से उत्तर एधते' के एच् (ए) को इस सूत्र से वृद्धि रूप (ऐ) एकादेश होता है। यह एङि पररूपम्' (६।१।९४) का अपवाद है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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