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षष्टाध्यायस्य प्रथमः पादः (२) ब्रह्मौदनः । ब्रह्म+ओदनः । ब्रह्म-औ-दनः । ब्रह्मौदनः ।
यहां ब्रह्म के अ-वर्ण से उत्तर ओदन के एच् (ओ) को इस सूत्र से वृद्धिरूप (औ) एकादेश होता है। ऐसे ही-ब्रह्मौपगवः, खट्वौपगवः । वृद्धिरादैच्' (१।१।१) से तपर आकार, ऐकार, औकार की वृद्धि संज्ञा की है। वृद्धि-एकादेशः
(१८) एत्येधत्यूठ्सु।८६| प०वि०-एति-एधति-ऊठसु ७।३ ।
स०-एतिश्च एधतिश्च ऊम् च ते-एत्येधत्यूठः, तेषु-एत्येधत्यूठसु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
___ अनु०-संहितायाम्, एकः, पूर्वपरयोः, आत्, वृद्धि:, एचि इति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायाम् आद् एत्येधत्यूठसु एचि पूर्वपरयोवृद्धिरेकः ।
अर्थ:-संहितायां विषयेऽवर्णाद् एति-एधति-ऊठ्सु एचि परत: पूर्वपरयो: स्थाने वृद्धिरूप एकादेशो भवति ।
उदा०- (एति:) उपैति, उपैषि, उपैमि। (एधति:) उपैधते, प्रैधते। (ऊठ) प्रष्ठौह:, प्रौष्ठोहा, प्रष्ठौहे।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (आत्) अ-वर्ण से पर (एत्येधत्यूठ्सु) एति, एधति, ऊठ विषयक (एचि) एच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयो:) पूर्व पर के स्थान में (वृद्धि:) वृद्धिरूप (एक) एकादेश होता है।
उदा०-(एति) उपैति। यह प्राप्त करता है। उपैषि । तू प्राप्त करता है। उपैमि । मैं प्राप्त करता हूं। (एधति) उपैधते। वह बढ़ता है। प्रैधते । वह बढ़ता है। (ऊ) प्रष्ठौह: । आगे ले जानेवालों को।
सिद्धि-(१) उपैति । उप+एति। उप्-ऐ-ति। उपैति ।
यहां उप' के अ-वर्ण से उत्तर एति' के एच् (ए) को इस सूत्र से वृद्धि रूप (ए) एकादेश होता है। ऐसे ही-उपैषि, उपैमि। यह 'एङि पररूपम्' (६।१।९४) का अपवाद है।
(२) उपैधते । उप+एधते । उप-ऐ-धते। उपैधते।
यहां उप' के अ-वर्ण से उत्तर एधते' के एच् (ए) को इस सूत्र से वृद्धि रूप (ऐ) एकादेश होता है। यह एङि पररूपम्' (६।१।९४) का अपवाद है।