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________________ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः ६५ से ल्यप् आदेश होता है। अधि के इकार और इङ् धातु के इकार को 'अकः सवर्णे दीर्घः' ( ६ /१/९८) से दीर्घरूप एकादेश होता है। 'अधी+य' इस स्थिति में ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्' (६ 1१ 1६९) से 'इङ्' धातु को तुक् आगम प्राप्त नहीं होता है किन्तु इस सूत्र से उक्त एकादेश को असिद्ध मानकर तुक् आगम होता है। गुण-एकादेश: (१६) आद् गुणः । ८७ । प०वि० - आत् ५ ।१ गुणः १ । १ । अनु०-संहितायाम्, अचि, एक:, पूर्वपरयोरिति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायाम् आदचि पूर्वपरयोर्गुण एकः । अर्थ:-संहितायां विषयेऽवर्णादचि परतः पूर्वपरयोः स्थाने गुणरूप एकादेशो भवति । उदा० - (ए) तवेदम्, खट्वेन्द्र, मालेन्द्र:, तवेहते, खट्वेहते । (ओ) तवोदकम्, खट्वोदकम्। (अर्) तवर्श्य:, खर्श्य: । (अल् ) तवल्कारः, खट्वल्कारः । आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (आत्) अ-वर्ण से उत्तर (अचि) अच् वर्ण परे होने पर (पूर्वपरयोः) पूर्व और पर वर्णों के स्थान में (गुणः ) गुणरूप (एक) एकादेश होता है। उदा०- (ए) तवेदम् । तेरा यह । खट्वेन्द्रः । खाट का स्वामी । मालेन्द्रः । माला का स्वामी । तवेहते। तेरा चेष्टा करता है। खट्वेहते । खाट चेष्टा करती है। (ओ) तवोदकम् । तेरा जल । खट्वोदकम् । खाट और जल। (अर्) तवर्श्य: । तेरा बारहसिंघा । खट्र्श्य: । खट्वा=खाट, ऋश्य: = बारहसिंघा । (अल्) तवल्कार: । तव= तेरा खट्वल्कारः । खट्वा=खाट, लृकारः - लृवर्ण । लृकार:- लवर्ण । सिद्धि-(१) तवेदम् । तव+इदम् । तव् + ए + दम् । तवेदम् । यहां 'तव' के अवर्ण से परे इदम् के इकार अच् को इस सूत्र से गुण रूप (ए) एकादेश होता है। ऐसे ही खट्वा + इन्द्र: - खट्वेन्द्रः, माला + इन्द्र:- मालेन्द्र:, तव + ईहते = तवेहते । खट्वा + ईहते = खट्वेहते । (२) तवोदकम् । तव + उदकम् । तव्-ओ-दकम् । तवोदकम् । यहां 'तव' के अवर्ण से परे उदक के उकार अच् को इस सूत्र से गुण रूप (ओ) एकादेश होता है। ऐसे ही खट्वा + उदकम् = खट्वोदकम् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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