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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (४) आच्छायाम् । यहां आङ् और छाया शब्दों का 'आङ्मर्यादाभिविध्योः ' (२1१1१२) से अव्ययीभाव समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ८४ '' (५) माच्छेत्सीत् । यहां 'छिदिर् द्वैधीकरणे' (रुधा०प०) धातु से 'माङि लुङ्' (३ । ३ । १७५) से लुङ् प्रत्यय है। संहिता विषय में छकार परे होने पर इस सूत्र शब्द को तुक् आगम होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (६) माच्छिदत्। यहां 'छिदिर्' धातु से पूर्ववत् लुङ् प्रत्यय है। 'इरितो वा' (३1१1५७ ) से चिल' के स्थान में 'अङ्' आदेश है। शेष कार्य पूर्ववत् है । तुक्-आगमः (४) दीर्घात् ॥७५ | वि०-दीर्घात् ५ । १ । अनु०- तुक्, संहितायाम्, छे इति चानुवर्तते । अन्वयः - संहितायां दीर्घाच्छे तुक् । अर्थ:-संहितायां विषये दीर्घाद् वर्णाच्छकारे परतस्तस्य दीर्घस्य तुक् - आगमो भवति । उदा० - स ह्रीच्छति । स म्लेच्छति । सोऽपचाच्छायते । स विचाच्छायते । आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि- विषय में (दीर्घात्) दीर्घ वर्ण से उत्तर (छे ) छकार परे होने पर उस दीर्घ वर्ण को (तुक्) तुक् आगम होता है। उदा० स हीच्छति । वह लज्जा करता है । स म्लेच्छति । वह अव्यक्त शब्द करता है । सोऽपचाच्छायते। वह पुन: पुन: / अधिक अपछेद करता है । स विचाच्छायते । वह पुन: पुन: / अधिक विच्छेद करता है। सिद्धि (१) हीच्छति । ह्री+तुक्+छ। हीत्+छ्। ह्रीच्+छ्। हीच्छ्+लट् । ह्रीच्छ्+तिप्। ह्रीच्छ्+शप्+ति । ह्रच्छ्+अ+ति । ह्रीच्छति । यहां संहिता विषय में दीर्घ ह्री' से उत्तर छकार परे होने पर इस सूत्र से 'ह्रीं' को तुक आगम होता है। 'स्तो: श्चुना श्चु:' ( ८ | ४ | ३९ ) से तकार को चुत्व चकार होता है। 'ही लज्जायाम्' (भ्वा०प०) धातु से लट् प्रत्यय है। ऐसे ही 'म्लेछ अव्यक्ते शब्दे (भ्वा०प०) धातु को 'तुक्' आगम और उससे 'लट्' प्रत्यय है । (२) अपचाच्छायते । अप+छा+यङ् । अप+छाय् - छाय। अप+छा- छाय। अप+चा तुक्-छाय। अप+चात् छाय। अप+चाच्+छाय । अपचाच्छाय+लट् । अपचाच्छाय+ तिप् । अपचाच्छाय+शप्+ति। अपचाच्छाय+अ+ति । अपचाच्छायति ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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