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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-तृतीयासमर्थाद् उत्तरपथ-शब्दात् प्रातिपदिकाद् आहृतं गच्छति चेत्यस्मिन्नर्थे यथाविहितं ठञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-उत्तरपथेनाऽऽहृतम्-औत्तरपथिकं द्रव्यम् । उत्तरपथेन गच्छतिऔत्तरपथिको वणिक्।
आर्यभाषा: अर्थ-तृतीया-समर्थ (उत्तरपथेन) उत्तरपथ प्रातिपदिक से (आहृतम्) आया हुआ (च) और (गच्छति) जाता है, अर्थ में (ठञ्) यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-उत्तरपथ से आया हुआ-औत्तरपथिक द्रव्य (माळ)। जो उत्तरपथ से जाता है वह-औत्तरपथिक वणिक् (व्यापारी)।
सिद्धि-औत्तरपथिकम् । उत्तरपथ+टा+ठञ् । औत्तरपथ्+इक। औतरपथक+सु । औत्तरपथिकम्।
यहां तृतीया-समर्थ 'उत्तरपथ' शब्द से आहृत-अर्थ में प्राग्वतेष्ठ (५।१।१८) से यथाविहित ठञ्' प्रत्यय है। पूर्ववत् ' के स्थान में 'इक्’ आदेश, अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही गच्छति अर्थ में-औत्तरपथिकः ।
विशेष: उत्तरपथ-उत्तर भारत में यातायात और व्यापार की महाधमनी गन्धार से पाटलिपुत्र तक चली गई है, अशोक, शेरशाह, अकबर आदि के समय में भी जो बराबर चालू रही उसी महामार्ग (राहे-आजम) का प्राचीन नाम उत्तरपथ' था। मेगस्थने आदि यूयानी लेखकों ने इसे "NORTHENROUT" कहा है, जो उत्तर-पथ का ठीक अनुवाद है। पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २३६) । वर्तमान-जी.टी. रोड।
अथ काल-अधिकारः
(१) कालात्।७७। वि०-कालात् ५।१।
अर्थ:-'कालात्' इत्यधिकारोऽयम्, यदित ऊर्ध्वं वक्ष्याम: ‘कालात्' इति तद्वेदितव्यम् । वक्ष्यति-तिन निर्वृत्तम्' (५ ।१।७८) इति । मासेन निर्वत्तम्-मासिकम्। आर्धमासिकम्। सांवत्सरिकम्।
आर्यभाषा: अर्थ- कालात्' यह अधिकार सूत्र है। जो इससे आगे कहेंगे वह कालात् कालविशेषवाची शब्द से जानना चाहिये। जैसे पाणिनि मुनि कहेंगे-तेन निवृत्तम् (५।१।७८)। एक मास में बनाया हुआ-मासिक। अर्धमास (१५ दिन) में बनाया हुआ-आर्धमासिक । संवत्सर (वर्ष) में बनाया हुआ-सांवत्सरिक।
सिद्धि-मासिक आदि पदों की सिद्धि आगे यथास्थान लिखी जायेगी।
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