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पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-(संख्या) दो हैं दन्त जिसके वह-द्विदन्। तीन हैं दन्त जिसके वह-विदन्। चार है दन्त जिसके वह-चतुर्दन्। (सु) सु-सुन्दर निकले हैं समस्त दन्त जिसके वह-सुदन् कुमार।
सिद्धि-द्विदन् । द्वि+औ+दन्त+औ। द्वि+दन्त। द्वि+दतृ। द्विदतृ+सु। द्विदत्+सु। द्वितुम्त्+सु। द्विदन्त्+सु । द्विदन्त्+० । द्विदन्।
यहां संख्यावाची द्वि और दन्त शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। 'द्विदन्त' के दन्त शब्द को इस सूत्र से समासान्त दतृ आदेश है। दतृ के उगित् (ऋ-इत्) होने से उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातो:' (७।११७०) से नुम् आगम होता है। हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (६।१।६७) से 'सु' का लोप और संयोगान्तस्य लोप:' (८।२।२३) से संयोगान्त तकार का लोप होता है। ऐसे ही-त्रिदन्, चतुर्दन्, सुदन् । दतृ-आदेश:
(३०) छन्दसि च।१४२। . प०वि०-छन्दसि ७।१ च अव्ययपदम्।
अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ, दन्तस्य, दतृ इति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि च बहुव्रीहौ दन्तस्य समासान्तो दत।
अर्थ:-छन्दसि विषये च बहुव्रीहौ समासे दन्त-शब्दस्य प्रातिपदिकस्य समासान्तो दतृ-आदेशो भवति।
उदा०-पत्रदतमालभेत । उभयादत आलभेत (ऋ० १० ।९० १०)। तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादत: (यजु० ३१८)।
आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (च) भी (बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (दन्तस्य) दन्त प्रातिपदिक को (समासान्तः) समास का अवयव (दत) दत आदेश होता है।
उदा०-पत्रदतमालभेत । उभयादत आलभेत (ऋ० १० १९०।१०)। तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादत: (यजु० ३१८)। अश्व और जो उभयादत्=दोनों ओर दन्तवाले पशु हैं वे उस परमपुरुष से उत्पन्न हुये हैं।
सिद्धि-पत्रदत् । यहां पत्र और दन्त शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। पत्रदन्त के दन्त शब्द को इस सूत्र से छन्दविषय में दतृ आदेश है। ऐसे ही-उभयादत् ।
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