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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-द्विमूर्ध: । द्वि+औ+मूर्धन्+औ। द्वि+मूर्धन्। द्विमूर्धन्+ष। द्विमूर्ध+अ। द्विमूर्ध+सु । द्विमूर्धः।
यहां द्वि और मूर्धन् शब्दों का पूर्ववत् बहुव्रीहि समास है। द्विमूर्धन् शब्द से इस सूत्र से समासान्त ष प्रत्यय है। 'नस्तद्धिते (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। ऐसे ही-त्रिमूर्ध: । 'पच्' प्रत्यय में चित:' (६।१।१६३) से अन्तोदात्त स्वर होता है और 'ष' प्रत्यय में 'आधुदात्तश्च' (३।१३) से आधुदात्त स्वर होता है। अत: स्वरभेद के लिये 'ष' प्रत्यय का विधान किया गया है।
अप्
(४) अप् पूरणीप्रमाण्योः ।११६ । प०वि०-अप् ११ पूरणी-प्रमाण्यो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)।
स०-पूरणी च प्रमाणी च ते पूरणीप्रमाण्यौ, तयो:-पूरणीप्रमाण्यो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-समासान्ता:, बहुव्रीहौ इति चानुवर्तते। अन्वय:-बहुव्रीहौ पूरणीप्रमाणीभ्यां समासान्तोऽप् ।
अर्थ:-बहुव्रीहौ समासे पूरण्यन्तात् प्रमाण्यन्ताच्च प्रातिपदिकात् समासान्तोऽप् प्रत्ययो भवति । अत्र पूरणीशब्देन पूरणप्रत्ययान्ता: स्त्रीलिङ्गा: शब्दा गृह्यन्ते।
उदा०-(पूरणी) कल्याणी पञ्चमी यासां रात्रीणां ता:-कल्याणीपञ्चमा रात्रय: । कल्याणीदशमा रात्रय: । (प्रमाणी) स्त्री प्रमाणी येषां ते-स्त्रीप्रमाणा: कुटुम्बिनः । भार्याप्रधाना इत्यर्थः ।।
आर्यभाषा: अर्थ-(बहुव्रीहौ) बहुव्रीहि समास में (पूरणीप्रमाण्यो:) पूरणी और प्रमाणी जिसके अन्त में हैं उस प्रातिपदिक से (समासान्त:) समास का अवयव (अप) अप् प्रत्यय होता है। यहां पूरणी' शब्द से पूरण-प्रत्ययान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों का ग्रहण किया जाता है।
उदा०-(परणी) जिन रात्रियों में पञ्चमी रात्रि कल्याणी मङगलमयी है वे-कल्याणी पञ्चम रात्रियां। जिन रात्रियों में दशमी रात्रि कल्याणी है वे-कल्याणी दशम रात्रियां। (प्रमाणी) जिन कुटुम्बी गृहस्थों में स्त्री प्रमाणी है वे-स्त्री प्रमाण कुटुम्बी। भार्याप्रधान गृहस्थ।
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