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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां 'अर्ध' और नौ' शब्दों का अर्ध नपुंसकम् (२।२।२) से एकदेशी तत्पुरुष समास है। 'अर्धनौ' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'टच' प्रत्यय है। 'एचोऽयवायाव:' (६।१७७) से औ' को 'आव्' आदेश होता है। यहां परवल्लिङ्ग द्वन्द्वतत्पुरुषयोः' (२।४।२६) से स्त्रीलिङ्गता प्राप्त है किन्तु लिङ्गमशिष्यं लोकाश्रयत्वाल्लिङ्स्य (महाभाष्यम्) से नपुंसक-लिङ्गता होती है। टच्
(१६) खार्याः प्राचाम् ।१०१। प०वि०-खार्या: ५।१ प्राचाम् ६।३। अनु०-समासान्ता:, तत्पुरुषस्य, द्विगो:, अर्धाच्च इति चानुवर्तते। अन्वय:-द्विगोरर्धाच्च खार्यास्तत्पुरुषात् समासान्तष्टच्, प्राचाम् ।
अर्थ:-द्विगुसंज्ञकाद् अर्धशब्दाच्च परस्मात् खार्यन्तात् तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति, प्राचामाचार्याणां मतेन।
उदा०-(द्विगु:) द्वयोः खार्यो: समाहार:-द्विखारम् । द्विखारि। त्रिखारम्। त्रिखारि। (अर्धात्) अर्धं खार्या:-अर्धखारम्। अर्धखारी।
आर्यभाषा: अर्थ-(द्विगो:) द्विगु-संज्ञक (च) और (अर्धात्) अर्ध शब्द से परे (खार्याः) खारी शब्द जिसके अन्त में है उस (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्त:) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है।
उदा०-(द्विगु) दो खारियों का समाहार-द्विखार। द्विखारि। तीन खारियों का समाहार-त्रिखार । त्रिखारि। (अर्ध) खारी का अर्धभाग-अर्धखार । अर्धखारी।। खारी=१६ द्रोण=१६० सेर (४ मण)।
सिद्धि-(१) द्विखारम्। द्वि+ओस्+खारी+ओस् । द्वि+खारी। द्विखारि+टच् । द्विखार्+अ। द्विखार+सु। द्विखारम्।
यहां द्वि और खारी शब्दों का तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२११५१) से समाहार अर्थ में द्विगु-तत्पुरुष समास है। द्विगु-संज्ञक द्विखारि' शब्द से प्राक्देशीय आचार्यों के मत में इस सूत्र से समासान्त 'टच्' प्रत्यय होता है। यस्येति च' (४।४।१४८) से अंग के इकार का लोप है। ऐसे ही-त्रिखारम् ।
(२) द्विखारि। यहां पाणिनिमुनि के मत में समासान्त टच्' प्रत्यय नहीं है। द्विगु-संज्ञक तत्पुरुष में स नपुंसकम्' (२।४।१७) से नपुंसकलिङ्गता और हस्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य' (१।२।४७) से हस्व होता है। ऐसे-त्रिखारि।
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