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पाणिनीय-अष्टाध्यायी - प्रवचनम्
सिद्धि - ( १ ) उत्तरसक्थम् । उत्तर+सु+सक्थि + ङस् । उत्तर+सक्थि + टच् । उत्तरसक्थ्+अ । उत्तरसक्थ+सु । उत्तरसक्थम् ।
यहां उत्तर और सक्थि शब्दों का पूर्वापराधरोत्तर ० ' (२।२1१ ) से एकदेशी तत्पुरुष समास है । इस 'उत्तरसक्थि' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'टच्' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के इकार का लोप होता है। ऐसे ही पूर्वसक्थम् । (२) मृगसक्थम् । यहां मृग और सक्थि शब्दों का 'षष्ठी' (२/२८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है । शेष कार्य पूर्ववत् है ।
(३) फलकसक्थम् । यहां उपमानवाची फलक और सक्थि शब्दों का 'विशेषणं विशेष्येण बहुलम् ' (२1१ 1५७ ) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है । टच्
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(१४) नावो द्विगोः । ६६ ।
प०वि० - नाव: ५ ।१ द्विगो: ५ । १ ।
अनु० - समासान्ता:, तत्पुरुषस्य, टच् इति चानुवर्तते । अन्वयः-नावो द्विगोस्तत्पुरुषात् समासान्तष्टच्। अर्थः-नौशब्दान्ताद् द्विगुसंज्ञकात् तत्पुरुषात् प्रातिपदिकात् समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति ।
उदा०- ( समाहारे) द्वयोर्नाव्योः समाहारः - द्विनावम् त्रिनावम् । ( उत्तरपदे) द्वे नावौ धनं यस्य द्विनावधनः । पञ्च नाव: प्रिया यस्यपञ्चनावप्रियः । (तद्धितार्थे ) द्वाभ्यां नौभ्यामागतम्-द्विनावरूप्यम्, द्विनावमयम् ।
आर्यभाषाः अर्थ- ( नाव:) नौ शब्द जिसके अन्त में है उस (द्विगोः) द्विगु-संज्ञक (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (च्) प्रत्यय होता है ।
द्विगु तत्पुरुष 'तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' ( 2121५१) से समाहार, उत्तरपद और तद्धितार्थ विषय में होता है।
उदा०
- (समाहार) दो नौकाओं का समाहार - द्विनाव । तीन नौकाओं का समाहार - त्रिनाव | ( उत्तरपद) दो नौकायें धन हैं जिसका वह द्विनावधन। पांच नौकायें धन हैं जिसका वह पञ्चनावधन। (तद्धितार्थ) दो नौकाओं से आया हुआ-द्विनावरूप्य, द्विनावमय
द्रव्य ।
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