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________________ ४५१ पञ्चमाध्यायस्य चतुर्थः पादः (२) पञ्चगवम् । पञ्चम्+आम्+गो+आम्। पञ्चन्+गो। पञ्चगो+टच् । पञ्चगव+सु। पञ्चगवम्। यहां पञ्चन् और गो शब्दों में तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५१) से समाहार अर्थ में द्विगुतत्पुरुष समास है। 'परमगो' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'टच' प्रत्यय है। पूर्ववत् 'अव्' आदेश होता है। ऐसे ही-दशगवम् । टच (८) अग्राख्यायामुरसः ।६३॥ प०वि०-अग्राख्यायाम् ७।१ उरस: ५।१। स०-अग्रस्याऽऽख्या-अग्राख्या, तस्याम्-अग्राख्यायाम् (षष्ठीतत्पुरुषः)। अग्रम् प्रधानम्। अनु०-समासान्ता, तत्पुरुषस्य, टच् इति चानुवर्तते। अन्वय:-अग्राख्यायामुरसस्तत्पुरुषात् समासान्तष्टच् । अर्थ:-अग्राख्यायाम् अग्रार्थे वर्तमानाद् उरश्शब्दान्तात् तत्पुरुषसंज्ञकात् प्रातिपदिकात् समासान्तष्टच् प्रत्ययो भवति । उदा०-अश्वानामुर:-अश्वोरसम्। हस्त्युरसम्। रथोरसम् । आर्यभाषा: अर्थ- (अग्राख्यायाम्) प्रधान अर्थ में विद्यमान (उरस:) उरस् शब्द जिसके अन्त में है उस (तत्पुरुषात्) तत्पुरुष-संज्ञक प्रातिपदिक से (समासान्तः) समास का अवयव (टच्) टच् प्रत्यय होता है। उदा०-अश्व-घोड़ों में उरस-प्रधान-अश्वोरस। हस्ती हाथियों में उरस= प्रधान-हस्त्युरस। रथों में उरस्-प्रधान-रथोरस। सिद्धि-अश्वोरसम्। अश्व+आम्+उरस्+सु। अश्व+उरस्। अश्वोरस्+टच् । अश्वोरस+सु । अश्वोरसम्। यहां अश्व और उरस् शब्दों में षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'अश्वोरस्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त टच्' प्रत्यय है। ऐसे ही-हस्त्युरसम्, रथोरसम्। जैसे शरीर के अवयवों का उरस् हृदय प्रधान होता है वैसे अन्य कोई प्रधान भी उरस्' कहाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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