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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् धू: कार्यभार है जिसका वह-महाधुर। (पथिन्) स्थल का पन्था मार्ग-स्थलपथ। जल का पन्था-जलपथ।
सिद्धि-(१) अनृचः । न+ऋक्+सु। अ+ऋच्। अ+नुट्+ऋच्। अनृच्+अ। अनृच+सु । अनृचः।
यहां ऋजन्त 'अनृच्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। ऐसे ही-बवचः।
(२) अर्धर्च: । अर्ध-सु+ऋच्+डस्। अर्ध+ऋच्। अर्धा+अ। अर्धार्च+सु । अर्धर्चः ।
यहां ऋजन्त 'अर्धर्च' शब्द से इस से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। 'अर्धं नपुंसकम् (२।२।२) से एकदेशी तत्पुरुष समास और अर्धर्चा: पुंसि च' (२।४।३१) से पुंलिङ्गता होती है।
(३) ललाटपुरम् । ललाट+डस्+पुर्+सु। ललाटपुर्+अ। ललाटपुर+सु। ललाटपुरम्।
यहां पुरन्त ललाटपुर्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। यहां लिङ्गमशिष्यं लोकाश्रयत्वाल्लिङ्गस्य' इस परिभाषा से 'परवल्लिङ्ग द्वन्द्वतत्पुरुषयो:' (२।४।२६) से प्राप्त परवत्-लिङ्गता नहीं होती है। ऐसे ही-नान्दीपुरम् ।
(४) द्वीपम् । द्वि+सु+अप्+जस् । द्वि+अप् । द्वि+ई । द्वीप्+अ। द्वीप+सु । द्वीपम्।
यहां अबन्त द्वीप्' शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। व्यन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत (६।३।९७) से 'अप' के अकार को ईकार आदेश होता है। ऐसे ही-अन्तरीपम्, समीपम्।
(५) राजधुरा । राजन्+डस्+धु+सु । राजन्+धुर् । राजधुर्+अ। राजधुर+टाम्। राजधुरा+सु । राजधुरा+0राजधुरा।
यहां धुरन्त राजधुर्’ शब्द से इस सूत्र से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय होता है।
(६) महाधुरः। यहां 'आन्महत: समानाधिकरणजातीययोः' (६।३।४६) से महत्' शब्द को आत्त्व और स्त्रिया: पुंवत्' (६।३।३४) से पुंवद्भाव होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(७) स्थलपथः । स्थल+डस्+पथिन्+सु । स्थलपथिन्+अ। स्थलपथ्+अ। स्थलपथ+सु । स्थलपथः ।
यहां पथिन्नन्त स्थलपथिन्' शब्द से समासान्त 'अ' प्रत्यय है। नस्तद्धिते (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (इन्) का लोप होता है। ऐसे ही-जलपथ: ।
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