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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(क्षेपे) निन्दा अर्थ में विद्यमान (किम:) किम् शब्द से परे प्रातिपदिक से (समासान्ता:) प्राप्त समासान्त प्रत्यय (न) नहीं होते हैं।
उदा०-कैसा राजा-किंराजा जो प्रजा की रक्षा नहीं करता है। कैसा सखा (मित्र)-किसखा जो द्रोह करता है। कैसी गौ-किंगौ जो दूध नहीं देती है।
सिद्धि-(१) किंराजा। किम्+सु+राजन्+सु। किम्+राजन्। किंराजन्+सु। किंराजान्+सु। किंराजान्+० । किंराजा० । किंराजा।
यहां किम् और राजन् सुबन्तों का किं क्षेपे' (२।१।६४) से कर्मधारय समास है। तत्पश्चात् 'राजाह:सखिभ्यष्टच्' (५।४।९१) से समासान्त 'टच' प्रत्यय प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे हीकिंसखा।
(२) किंगौः । यहां किम् और गो सुबन्तों का पूर्ववत् कर्मधारय समास होता है। तत्पश्चात् 'गोरतद्धितलुकि' (५।४।५२) से समासान्त टच्' प्रत्यय प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। समासान्तप्रत्ययप्रतिषेधः
(४) नत्रस्तत्पुरुषात् ७१। प०वि०-नञः ५१ तत्पुरुषात् ५।१। अनु०-समासान्ताः, न इति चानुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुषाद् नञः परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता न।
अर्थ:-तत्पुरुषसंज्ञकाद् नञः परस्मात् प्रातिपदिकात् समासान्ता: प्रत्यया न भवन्ति।
उदा०-न राजा-अराजा। न सखा-असखा। न गौ:-अगौः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषात्) तत्पुरुषसंज्ञक (नञ्) नञ् से परे प्रातिपदिक से (समासान्ता:) प्राप्त समासान्त प्रत्यय (न) नहीं होते हैं।
उदा०-राजा नहीं-अराजा। सखा नहीं-असखा। गौ नहीं-अगौ।
सिद्धि-(१) अराजा । न+सु+राजन्। न+राजन्। अ+राजन् । अराजन्+सु। अराजान्+सु। अराजान्+०। अराजा० । अराजा।
यहां नञ् और राजन् सुबन्तों का न' (२।२।६) से नञ्-तत्पुरुष समास है। तत्पश्चात् राजाह:सखिभ्यष्टच् (५ ।४।९१) से समासान्त टच्' प्रत्यय प्राप्त होता है। इस सूत्र से उसका प्रतिषेध हो जाता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-असखा ।
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