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________________ पञ्चमाध्यायस्य प्रथमः पादः २५ अन्वय:-यथायोगं विभक्तिसमर्थेभ्य: शतमान०वसनेभ्य आ-अर्हाद् अण् । अर्थ:-यथायोगं विभक्तिसमर्थेभ्य: शतमान-विंशतिक-सहस्र-वसनेभ्य: प्रातिपदिकेभ्य आ-अहीयेष्वर्थेषु अण् प्रत्ययो भवति। उदा०-(शतमानम्) शतमानेन क्रीतम्-शातमानं शतम् । (विंशतिकम्) विंशतिकेन क्रीतम्-बैंशतिकम्। (सहस्रम्) सहस्रेण क्रीतम्-साहस्रम्। (वसनम्) वसनेन क्रीतम्-वासनम् । आर्यभाषा: अर्थ-यथायोग विभक्ति-समर्थ (शतमान०वसनात्) शतमान, विंशतिक, सहस्र, वसन प्रातिपदिकों से (आ-अहत्)ि आ-अहीय अर्थों में (अण्) अण् प्रत्यय होता है। उदा०-(शतमान) शतमान (सौ रत्ती का सोने का सिक्का) से क्रीत-शातमान शत (कापिण)। (विंशतिक) विशतिक (२० माष के सिक्का) से क्रीत-बैंशतिक। (सहस्र) सहस्र कार्षापणों से क्रीत-साहस्र। (वसन) वसन=एक शाटक (धोती) से क्रीत-वासन। सिद्धि-शातमानम् । शतमान+टा+अण् । शातमान्+अ। शातमान+सु। शातमानम्। यहां 'शतमान' शब्द से आ-अ य क्रीत अर्थ में इस सूत्र से 'अण्' प्रत्यय है। पूर्ववत् अंग को आदिवृद्धि और अंग के अकार का लोप होता है। ऐसे ही-वैशतिक: आदि। विशेष: शतमान-सौ रत्तीवाले चांदी के वास्तविक सिक्के तक्षशिला की खुदाई में प्राप्त हुये हैं। उनकी पहचान शतमान सिक्के से करना युक्ति-संगत और प्रमाण-सामग्री के अनुकूल है। मुद्रायें शलका-आकृति की हैं और उनका तोल १७७.३ ग्रेन या ठीक सौ रत्ती के लगभग है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० २५५) । ___विंशतिक-यह एक प्रकार का कार्षापण सिक्का था जिसके २० भाग होते थे। इस प्रकार के दो तरह के कार्षापण थे। एक १६ माष का और दूसरा २० माष का होता था। बीस भाग होने के कारण उसका नाम विंशतिक पड़ा था (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पू० २६३) माष=२ तोला चांदी का सिक्का और ५ तोला तांबे का सिक्का। प्रत्ययस्य लुक (१०) अध्यर्धपूर्वाद् द्विगोलुंगसंज्ञायाम्।२८ । प०वि०-अध्यर्ध-पूर्वात् ५ ।१ द्विगो: ५ ।१ लुक् ११ असंज्ञायाम् ७१। स०-अध्यारूढम् अर्धमस्मिन्निति-अध्यर्धम् । अध्यर्थं पूर्वं यस्मिँस्तत्अध्यर्धपूर्वम्, तस्मात्-अध्यर्धपूर्वात् (बहुव्रीहिः)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003299
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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