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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(युवा) ये सब युवा (जवान) हैं, यह इनमें अतिशय से युवा है-कनिष्ठ है, यविष्ठ है (इष्ठन्)। ये दोनों युवा हैं, यह इन दोनों में अतिशय से युवा है-कनीयान् है, यवीयान् है (ईयसुन्)। (अल्प) ये सब अल्प-तुच्छ हैं, यह इनमें अतिशय अल्प है-कनिष्ठ है, अल्पिष्ठ है (इष्ठन्)। ये दोनों अल्प-तुच्छ हैं, यह इन दोनों में अतिशय से अल्प है-कनीयान् है।, अल्पीयान् है (ईयसुन्)।
सिद्धि-(१) कनिष्ठः । युवन्+सु+इष्ठन् । कन्+इष्ठ। कनिष्ठ+सु। कनिष्ठः।
यहां युवन्' शब्द से अजादि 'इष्ठन्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से उसके स्थान में कन' आदेश है। ऐसे ही अल्प शब्द से भी-कनिष्ठः।
(२) यविष्ठः । यहाँ युक्न्' शब्द से अजादि 'इन्छन्' प्रत्यय परे होने पर विकल्प पक्ष में कन् आदेश नहीं होता है। नस्तद्धिते (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (अन) का लोप होता है। ऐसे ही अल्प शब्द से-अल्पिष्ठः।
(३) कनीयान् । युव+सु+ईयसुन् । कन्+ईयस् । कनीयस्+सु । कनीया+तुम्+स्+सु। कनीयान्+सु। कनीयान्+० । कनीयान् ।
यहां युवन्' शब्द से अजादि ईयसुन्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से उसके रथान पर कन् आदेश होता है। शेष कार्य 'पटीयान्' ५।३।५७) के समान है। ऐसे ही-अल्प शब्द से भी-कनीयान्।
(४) यवीयान् । यहां 'युवन्' शब्द से अजादि ईयसुन्' प्रत्यय परे होने पर विकल्प पक्ष में कन्' आदेश नहीं होता है। नस्तद्धिते' (६।४।१४४) से अंग के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। ऐसे ही 'अल्प' शब्द से-अल्पीयान् । प्रत्यय-लुक्
(११) विन्मतोलुंक्।६५। प०वि०-विन्-मतो: ६।२ लुक् ११।
स०-विन् च मत् च तौ विन्मतौ, तयो:-विन्मतो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-अजादी इत्यनुवर्तते। अन्वय:-विन्मतो: प्रत्यययोलुंग अजाद्यो: (इष्ठन्-ईयसुनोः) ।
अर्थ:-विनो मतुपश्च प्रत्ययस्य लुग् भवति, अजाद्यो:-इष्ठन्-ईयसुनो: प्रत्यययोः परत:।
उदा०-(विन्) सर्वे इमे स्रग्विणः, अयमेषामतिशयेन स्रग्वी-स्रजिष्ठ: (इष्ठन्)। उभाविमौ स्रग्विणी, अयमनयोरतिशयेन स्रग्वी-स्रजीयान्
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