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स्थलम्
मोटी।
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नीलम्
कुशी
कामुक:
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् प्रातिपदिकम् ङीष् अर्थ: भाषार्थ: १. जानपद: जानपदी वृत्तिः वृत्ति (नौकरी)। २. कुण्डम् कुण्डी अमत्रम् पात्र। गोणम् गोणी
आवपनम्
बोरी। स्थली अकृत्रिमा सूखी भूमि (थळी)। भाज: भाजी श्राणा माण्ड। ६. नाग: नागी __ स्थौल्यम् काल: काली
काले रंगवाली। नीली अनाच्छादनम् नंगी ओषधि, गौ, घोड़ी आदि। कुश:
अयोविकारः फाळी।
कामुकी मैथुनेच्छा मैथुन की इच्छावाली। ११. कबर: कबरी केशवेशः केश-शृंगार करनेवाली।
आर्यभाषा: अर्थ- (जानपद०कबरात्) जानपद, कुण्ड, गोण, स्थल, भाज, नाग, काल, नील, कुश, कामुक, कबर प्रातिपदिकों से यथासंख्य (वृत्ति केशवेशेषु) वृत्ति, अमत्र, आवपन, अकृत्रिमा, श्राणा, स्थौल्य, वर्ण, अनाच्छादन, अयोविकार, मैथुनेच्छा, केशवेश अर्थो में (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीए) ङीष् प्रत्यय होता है।
उदा०-उदाहरण और उनका अर्थ संस्कृत भाग में देख लेवें। सिद्धि-जानपदी। जानपद+ङीष् । जानपदी+सु। जानपदी।
यहां जानपद' शब्द से वृत्ति अर्थ में स्त्रीलिङ्ग में इस सूत्र से 'डीए' प्रत्यय है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अ-लोप होता है। ऐसे ही-कुण्डी आदि। ङीष् (प्राचां मते)
(४) शोणात् प्राचाम् ।४३। प०वि०-शोणात् ५ ।१ प्राचाम् ६।३ । अनु०-ङीष् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-शोणात् स्त्रियां ङीष् प्राचाम् ।
अर्थ:-शोणात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां ङीष् प्रत्ययो भवति, प्राचामाचार्याणां मतेन।
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