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चतुर्थाध्यायस्य तृतीयः पादः अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थाद् अनुसमुद्रम् समुद्रसमीपे वर्तमानाद् द्वीपात् प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु यञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-द्वीपे जातं द्वैप्यम्।
आर्यभाषा अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (अनुसमुद्रम्) समुद्र के समीपवर्ती (द्वीपात्) द्वीप प्रातिपदिक से (शेष) शेष अर्थों में (यञ्) यञ् प्रत्यय होता है।
उदा०-द्वीपे जातं द्वैप्यम् । समुद्र के समीपवर्ती द्वीप में उत्पन्न हुआ-द्वैप्य। सिद्धि-द्वैप्यम् । द्वीप+डि+यञ् । द्वैप्+य। द्वैप्य+सु। द्वैप्यम् ।
यहां सप्तमी-समर्थ समुद्र के समीपवर्ती द्वीप' शब्द से शेष अर्थों में इस सूत्र से यञ्) प्रत्यय है। तद्धितेष्वचामादेः' (७।२।११७) से अंग को आदिवद्धि और 'यस्येति च' (६।४।१४८) से अंग के अकार का लोप होता है।
विशेषः द्विर्गता आपो यस्मिंस्तद् द्वीपम्' अर्थात् जिसके दोनों ओर जल हो उसे द्वीप' कहते हैं। यहां अनुसमुद्र-समुद्र के समीपवर्ती द्वीप' शब्द से 'यञ्' प्रत्यय का विधान किया गया है। समुद्र-समीपता से अन्यत्र द्वीप' शब्द से इसका कच्छादिगण में पाठ होने से कच्छादिभ्यश्च' (४।२।१३३) से 'अण्' प्रत्यय होता है। मनुष्य और तत्स्थ की विवक्षा में 'मनुष्यतत्स्थयोवु (४।२।१३४) से 'वुञ्' प्रत्यय होता है। द्वीपे भवम् द्वैपम् (अण्) । द्वैपको मनुष्य: । द्वैपकमस्य हसितम् (वुञ्)।
ठञ्
(६५) कालाबञ्।११। प०वि०-कालात् ५।१ ठञ् १।१। अनु०-शेषे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-यथासम्भव०कालात् शेषे ठञ् ।
अर्थ:-यथासम्भवविभक्तिसमर्थात् कालविशेषवाचिन: प्रातिपदिकात् शेषेष्वर्थेषु ठञ् प्रत्ययो भवति।
उदा०-मासे जातं मासिकम्। अर्धमासे जातं आर्धमासिकम् । संवत्सरे जातं सांवत्सरिकम्।
आर्यभाषा: अर्थ-यथासम्भव-विभक्ति-समर्थ (कालात्) कालविशेषवाची प्रातिपदिक से (शेषे) शेष अर्थों में ठञ् प्रत्यय होता है।
उदाo-मासे जातं मासिकम् । एक मास में उत्पन्न हुआ-मासिक। अर्धमासे जातं आर्धमासिकम् । अर्धमास में उत्पन्न हुआ-आर्धमासिक। संवत्सरे जातं सांवत्सरिकम् । संवत्सर-एक वर्ष में उत्पन्न हुआ-सांवत्सरिक ।
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