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अनुभूमिका (१०) शरावती :- कुरुक्षेत्र की घग्घर नदी के साथ इसकी पहचान की गई है। यह भारत के प्राच्य और उदीच्य देशों के बीच की सीमा-नदी थी।
(११) रुमण्वत् :- काशिका के अनुसार लवण के स्थान में रुमण आदेश होने से यह शब्द बना है का०-'लवणशब्दस्य रुमणभावो निपात्यते' (८।२।१२)। अत: इस नदी का रूमा (लूणी नदी) नाम जान पड़ता है जो कि सांभर झील से निकलती है।
(१२) रथस्या :- यह रथस्या वा रथस्था नदी पंचाल (बरेली) प्रदेश की रामगंगा (रथवाहिनी) नदी थी जो कि ऊपरले भाग में अब भी राहुत कहाती है। राहुत' रथस्था का ही अपभ्रंश है।
(१३) उदुम्बरावती :- व्यास और रावी नदी के बीच में त्रिगर्त (कांगड़ा) को जहां से रास्ता गया है वहां गुरुदासपुर, पठानकोट और नूरपुर इलाके में औदुम्बरों के देश की ही किसी नदी का नाम उदुम्बरावती था।
(१४) इक्षुमती :- इसकी पहचान गंगा की सहायक नदी फर्रुखाबाद जिले की ईखन नदी से की जाती है। (१५) द्रुमती :- यह सम्भवत: काश्मीर की द्रास नदी है।
(६) मान (मांप-तोल) पाणिनीय अष्टाध्यायी में जिन मानों का उल्लेख किया गया है वे उन्मान, परिमाण और प्रमाण भेद से तीन प्रकार के हैं। जैसा कि लिखा है :
ऊर्ध्वमानं किलोन्मानं परिमाणं तु सर्वतः।
आयामास्तु प्रमाणं स्यात् संख्या बाह्या तु सर्वतः ।। अर्थ :- ऊर्ध्वमान अर्थात् बाट को उन्मान, सर्वतोमान (सिक्का) को परिमाण और आयाम लम्बाई का मान फुटा प्रमाण कहाता है। यहां पाठकों के हितार्थ इन मानों का संक्षिप्त परिचय लिखा जाता है।
(१) उन्मान (बांट) (१) तुला (तराजू) यह उन्मान का करण है। तुला सम्मित
(तोला हुआ) तुल्य कहाता है। (२) गुंजा
१ रत्ती (रक्तिका)। (३) काकणी
१५ रत्ती। (४) निष्पाव
३ रत्ती। (५) माषक
५ रत्ती।
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