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________________ २३३ तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः (४) ऊषुः । वस्+लिट्। वस्+झि। वस्+उस् । वस्+वस्+उस् । व+वस्+उस्। उ+उस्+उस् । ऊस्+उस्। ऊषुः। यहां पुरा' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त अर्थ में पूर्वोक्त वस्' धातु से यथाविषय लिट्' प्रत्यय है। लिट्' के स्थान में झि' आदेश, परस्मैपदानां णलतुसुस्' (३।४।८२) से झि' के स्थान में उस्' आदेश, लिटि धातोरनभ्यासस्य (६।१८) से वस्' को द्वित्व, ‘वचिस्वपियजादीनां किति' (६।१।१५) से 'वस्' को सम्प्रसारण, लिट्यभ्यासस्योभयेषाम्' (६।१।१७) से अभ्यास को भी सम्प्रसारण और शासिवसिघसीनां च' (८।३।६०) से षत्व होता है। इति भूतकालप्रत्ययप्रकरणम् । वर्तमानकालप्रत्ययप्रकरणम् लट् (१) वर्तमाने लट् ।१२३ । प०वि०-वर्तमाने ७१ लट् १।१ प्रारब्धोऽपरिसमाप्तश्च वर्तमान: काल:, तस्मिन्-वर्तमाने। अन्वय:-वर्तमाने धातोर्लट्। अर्थ:-वर्तमाने कालेऽर्थे विद्यमानाद् धातो: परो लट् प्रत्ययो भवति। उदा०-स पचति । स पठति। आर्यभाषा-अर्थ-(वर्तमाने) वर्तमानकाल अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (लट्) लट् प्रत्यय होता है। उदा०-स पचति । वह पकाता है। स पठति । वह पढ़ता है। सिद्धि-पचति । यहां वर्तमानकाल अर्थ में डुपचष् पाके' (भ्वा०उ०) धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। 'तिप्तस्झि०' (३।४।७) से लट्' के स्थान में तिप्' आदेश और कर्तरि शप्' (३।१।६८) से शप्' विकरण-प्रत्यय होता है। ऐसे ही- पिठ व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से पठति। शतृ+शानच् (लडादेशः)(२) लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे।१२४। प०वि०-लट: ६।१ शतृ-शानचौ १।२ अप्रथमासमानाधिकरणे ७१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003297
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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