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तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः
अन्वयः - क्रव्ये सुप्युपपदेऽदो धातोर्विट् ।
अर्थ:-क्रव्ये सुबन्ते उपपदेऽपि अद्- धातोः परो विट् प्रत्ययो भवति ।
उदा० - क्रव्यमत्तीति क्रव्यात् ।
आर्यभाषा - अर्थ - (क्रव्ये) क्रव्य (सुपि ) सुबन्त उपपद होने पर (च) भी (अदः) अद् (धातोः) धातु से परे (विट्) विट्प्रत्यय होता है।
उदा० - क्रव्यमत्तीति क्रव्यात् । कच्चा मांस खानेवाला पिशाच ।
सिद्धि-क्रव्यात्। यहां 'क्रव्य' सुबन्त उपपद होने पर 'अद भक्षणे' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से विट्' प्रत्यय है । पूर्ववत् वि' का लोप और अद् के द् को चर्त्व होता है. 7
कप्
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(१) दुहः कप् घश्च । ७० ।
प०वि० - दुहः ५ ।१ कप् १ । १ घः १ । १ च अव्ययपदम् । अनु० - सुपि इत्यनुवर्तते ।
अन्वयः - सुप्युपपदे दुहो धातोः कप् घश्च ।
अर्थ:- सुबन्ते उपपदे दुह धातोः परः कप् प्रत्ययो भवति, घकारश्चान्तादेशो भवति ।
उदा०-कामं दोग्धीति कामदुघा धेनुः । अर्घं दोग्धीति अर्धदुधा । अर्घः=मधुपर्कः ।
आर्यभाषा-अर्थ- (सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (दुहः) दुह (धातो:) धातु से परे ( कप) कप् प्रत्यय होता है (च) और (घ) धातु के अन्त्य हकार को घकार आदेश होता है।
उदा० - कामं दोग्धीति कामदुधा धेनुः । दूध, घी आदि की कामना को पूरा करनेवाली दुधारु गौ । अर्घं दोग्धीति अर्धदुघा । अर्घ प्रदान करनेवाली नारी। अर्घ=मधुपर्क | मधु + दधि= मधुपर्क |
सिद्धि-कामदुघा । यहां काम सुबन्त उपपद होने पर 'दुह प्रपूरणे' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'कप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से दुह धातु के ह् को घ् आदेश होता है। कामदुघ+टाप्। कामदुघा। स्त्रीलिङ्ग में 'अजाद्यतष्टाप्' (४/१/४) से 'टाप्' प्रत्यय होता है।
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