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________________ द्वितीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः ५०१ सिद्धि-वक्ता । ब+तृच् । वच+तृ। वक्तृ+सु । वक्ता। यहां 'ब्रूज्ञ व्यक्तायां वाचि' (अदा०उ०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय होता है। इस आर्धधातुक विषय में इस सूत्र से 'ब्रू' धातु के स्थान में वच्' आदेश होता है। 'खरि च' (८।४।५५) से 'वच्' के च को चर्-कृ होता है। ऐसे ही वक्तुम्' और वक्तव्यम्' रूप सिद्ध करें। चक्षिङ् (ख्याञ्) ___ (१६) चक्षिङ: ख्याञ्।५४। प०वि०-चक्षिङ: ६१ ख्याञ् ११ । अनु०-आर्धधातुके इत्यनुवर्तते। अन्वय:-चक्षिङ: ख्याञ् आर्धधातुके। अर्थ:-चक्षिङ: स्थाने ख्याञ् आदेशो भवति, आर्धधातुके विषये। उदा०-आख्याता । आख्यातुम् । आख्यातव्यम्। आर्यभाषा-अर्थ-(चक्षिङ:) चक्षिङ् धातु के स्थान में (ख्याञ्) ख्याञ् आदेश होता है (आर्धधातुके) आर्धधातुक विषय में। उदा०-आख्याता। कहनेवाला। आख्यातुम् । कहने के लिये। आख्यातव्यम् । कहना चाहिये। सिद्धि-आख्याता । आड्+चक्षिड्+तृच् । आ+ख्याञ्+तु। आ+ख्या+तृ। आख्यात+सु। आख्याता। ___ यहां आङ् उपसर्गपूर्वक चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि, अयं दर्शनेऽपि (अदा०आ०) धातु से पूर्ववत् तृच्’ प्रत्यय है। इस आर्धधातुक विषय में चक्षिङ्' धातु के स्थान में इस सूत्र से 'ख्याञ्' आदेश होता है। ऐसे ही-आख्यातुम्' और 'आख्यातव्यम्' रूप सिद्ध करें। चक्षिङ् (वा ख्याञ्) (२०) वा लिटि।५५। प०वि०-वा अव्ययपदम्, लिटि ७१। अनु०-आर्धधातुके, चक्षिङः, ख्याञ् इति चानुवर्तते । अन्वय:-चक्षिङो वा ख्याञ् लिटि आर्धधातुके। अर्थ:-चक्षिङ: स्थाने विकल्पेन ख्याञ्-आदेशो भवति, लिटि। आर्धधातुके विषये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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