________________
द्वितीयाध्यायस्य तृतीयः पादः
४१६ आर्यभाषा-अर्थ-(यस्य) जिस गौ आदि की (भावेन) क्रिया से (भावलक्षणम्) कोई दूसरी क्रिया लक्षित की जाती है, उस पूर्व क्रिया से (च) भी (सप्तमी) सप्तमी विभक्ति होती है।
उदा०-गोषु दुह्यमानासु गतो देवदत्तः । जब गाय दुही जारही थी तब देवदत्त चला गया। गोषु दुग्धासु समागतो यज्ञदत्तः । जब गाय दुही जा चुकी थी तब यज्ञदत्त आया। अग्निषु हूयमानेषु गतो देवदत्त: । जब अग्नि में होम किया जारहा था तब देवदत्त चला गया। अग्निषु हुतासु समागतो यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त अग्नि में होम हो चुकने पर आया।
सिद्धि-गोषु दुह्यमानासु गतो देवदत्तः। यहां गौ की दोहन क्रिया से देवदत्त की गमन क्रिया लक्षित की जारही है अत: दोहन क्रिया में सप्तमी विभक्ति है। ऐसे ही सर्वत्र समझें। षष्ठी सप्तमी च
(३) षष्ठी चानादरे।३८। प०वि०-षष्ठी ११ च अव्ययपदम्, अनादरे ७।१। स०-न आदर इति अनादर:, तस्मिन्-अनादरे (नञ्तत्पुरुषः) । अनु०-सप्तमी, यस्य च भावेन भावलक्षणमिति चानुवर्तते। अन्वय:-यस्य च भावेन भावलक्षणं ततोऽनादरे षष्ठी सप्तमी च।
अर्थ:-यस्य च क्रियया क्रियान्तरं लक्ष्यते ततोऽनादरे गम्यमाने षष्ठी सप्तमी च विभक्तिर्भवति ।
उदा०-रुदत:६ परिजनस्य प्रावाजीद् दयानन्द:। रुदति परिजने प्रावाजीत् दयानन्द: । क्रोशत: परिजनस्य प्राव्राजीत् शंकरः। क्रोशति परिजने प्राव्राजीत् शंकरः।
आर्यभाषा-अर्थ-(यस्य) जिसकी (भावेन) क्रिया से (भावलक्षणम्) कोई दूसरी क्रिया लक्षित की जाती है वहां (अनादरे) अनादर प्रकट होने पर (षष्ठी) षष्ठी (च) और (सप्तमी) सप्तमी विभक्ति होती है।
उदा०-रुदत: परिजनस्य प्राव्राजीद् दयानन्दः । दयानन्द परिजन के रोते हुये परिव्राजक बन गया। रुदति परिजने प्रावाजीद् दयानन्दः । अर्थ पूर्ववत् है। क्रोशत: परिजनस्य प्राव्राजीत शंकरः। शंकर परिवार के चिल्लाते हुये परिव्राजक बन गया। क्रोशति परिजने प्राव्राजीत् शंकरः । अर्थ पूर्ववत् है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org