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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इति अतसर्थप्रत्ययः, तेन:-अतसर्थप्रत्ययेन (षष्ठीतत्पुरुषगर्भितसप्तमीतत्पुरुषः)।
अन्वय:-अतसर्थप्रत्ययेन युक्ते शब्दे षष्ठी। अर्थ:-अतसर्थ-प्रत्ययान्तेन पदेन युक्ते शब्दे षष्ठी विभक्तिर्भवति ।
उदा०-दक्षिणतो ग्रामस्य आगतो देवदत्तः । उत्तरतो ग्रामस्य आगतो यज्ञदत्तः। पुरस्ताद् ग्रामस्य नदी वहति। उपरि ग्रामस्य कादम्बिनी प्रयाति। उपरिष्टाद् ग्रामस्य सौदामिनी विराजते।
आर्यभाषा-अर्थ-(अतसर्थप्रत्ययेन) अतसुच् प्रत्यय और कोई उसके अर्थवाला प्रत्यय जिसके अन्त में है उससे संयुक्त शब्द में (षष्ठी) षष्ठी विभक्ति होती है।
उदा०-दक्षिणतो ग्रामस्य आगतो देवदत्तः । देवदत्त गांव की दक्षिण दिशा से आया। उत्तरतो ग्रामस्य आगतो यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त गांव की उत्तर दिशा से आया। पुरस्ताद् ग्रामस्य नदी वहति। गांव के सामने से नदी बहती है। उपरि ग्रामस्य कादम्बिनी प्रयाति । गांव के ऊपर से मेघमाला जारही है। उपरिष्टाद् ग्रामस्य सौदामिनी विराजते। गांव के ऊपर से बिजली चमक रही है।
सिद्धि-(१) दक्षिणतो ग्रामस्य आगतो देवदत्तः । दक्षिण+डसि+अतसुच् । दक्षिण+अतस् । दक्षिणतः ।
यहां 'दक्षिणोत्तराभ्यामतसुच् (५।३।२८) से सप्तमी, पञ्चमी और प्रथमा विभक्तिवाले, दिक, देश और काल अर्थ में वर्तमान दक्षिण शब्द से अतसुच् प्रत्यय का विधान किया गया है। अतुसच् प्रत्ययान्त दक्षिणत:' से संयुक्त 'ग्राम' शब्द में षष्ठी विभक्ति है।
(२) उपरि । ऊर्ध्व+रिल्। उप+रि। उपरि।
यहां अतुसच् प्रत्यय के अर्थ में उपर्युपरिष्टात्' (५।३।३१) से रिल' प्रत्यय का निपातन किया गया है।
(३) उपरिष्टात् । ऊर्ध्व+रिष्टातिल । उप+रिष्टात् । उपरिष्टात्।
यहां भी अतसुच् प्रत्यय के अर्थ में 'उपर्युपरिष्टात् (५ १३ १३१) से 'रिष्टातिल प्रत्यय का निपातन किया गया है। इनसे संयुक्त ग्राम शब्द में षष्ठी विभक्ति है।
विशेष- 'अतसुच्' प्रत्यय सप्तमी, पञ्चमी और प्रथमा विभक्तिवाले दिशावाची शब्दों से स्वार्थ में विधान किया गया है। अत: उससे संयुक्त शब्द में भी सप्तमी, पञ्चमी और प्रथमा विभक्ति होनी चाहिये। प्रकृत सूत्र से वहां षष्ठी विभक्ति का विधान किया गया है।
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