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________________ ३६१ द्वितीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः ३६१ कालवाचिन: (४) कालाः परिमाणिना।५। प०वि०-काला: १।३ परिमाणिना ३१ । परिमाणमस्यास्तीति परिमाणी, तेन-परिमाणिना (तद्धितवृत्ति:)। अर्थ:-परिमाणवचना: कालवाचिन: सुबन्ता: परिमाणिवाचिना समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यन्ते, तत्पुरुषश्च समासो भवति । षष्ठीतत्पुरुषापवाद:। उदा०-मासो जातस्येति मासजातः। संवत्सरो जातस्येति संवत्सरजातः। एवम्-द्व्यहजात: । व्यहजात:। आर्यभाषा-अर्थ-(काला:) परिमाण के वाचक कालवाची सुबन्तों का (परिमाणिना) परिमाणवालें समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। यह षष्ठीतत्पुरुष समास का अपवाद है। उदा०-मासो जातस्येति मासजातः । जिसे पैदा हुये एक मास हुआ है। संवत्सरो जातस्येति संवत्सरजातः । जिसे पैदा हुये एक वर्ष हुआ है। इसी प्रकार-व्यहजात: । दो दिन का पैदा हुआ। त्र्यहजातः । तीन दिन का पैदा हुआ। सिद्धि-मासजात: । मास+सु+जात+डस् । मासजात+सु । मासजातः । नञ् शब्द: (५) नञ्।६। वि०-नञ् अव्ययपदम् । अर्थ:-नञ् इत्यव्ययं सुबन्तं समर्थेन सुबन्तेन सह विकल्पेन समस्यते, तत्पुरुषश्च समासो भवति। उदा०-न ब्राह्मण इति अब्राह्मण: । न वृषल इति अवृषलः । आर्यभाषा-अर्थ- (नञ्) नञ् इस अव्यय सुबन्त का समर्थ सुबन्त के साथ (विभाषा) विकल्प से समास होता है और उसकी (तत्पुरुषः) तत्पुरुष संज्ञा होती है। उदा०-न ब्राह्मण इति अब्राह्मण: । जो ब्राह्मण नहीं है। न वृषल इति अवृषलः । जो वृषल-नीच नहीं है। सिद्धि-अब्राह्मणः । नञ्+सु+ब्राह्मण+सु । न+ब्राह्मण । अ+ब्राह्मण । अब्राह्मण+सु। अब्राह्मणः। यहां नलोपो नञः' (६।३।७३) से नञ् के न् का लोप हो जाता है और उसका 'अ' शेष रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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