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________________ प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः २५१ (३) प्रत्यवसानार्थक ( खाना-पीना अर्थवाली ) - भुङ्क्ते माणवक ओदनम् । बालक भात खाता है। स भोजयति माणवकम् ओदनम् । वह बालक को भात खिलाता है। अश्नाति माणवक ओदनम् । बालक भात खाता है । स आशयति माणवकं ओदनम् । वह बालक को भात खिलाता है। (४) शब्दकर्मवाली - अधीते माणवको वेदम् । बालक वेद पढ़ता है । सोऽध्यापयति माणवकं वेदम् । वह बालक को वेद पढ़ाता है। पठति माणवको वेदम् । बालक वेद पढ़ता है । स पाठयति माणवकं वेदम् । वह बालक को वेद पढ़ाता है । (५) अकर्मक - आस्ते देवदत्तः । देवदत्त बैठता है । स आसयति देवदत्तम् । वह देवदत्त को बैठाता है। शेते देवदत्तः । देवदत्त सोता है । स शाययति देवदत्तम् । वह देवदत्त को सुलाता है । सिद्धि- (१) गच्छति माणवको ग्रामम् । यहां गति अर्थवाली गम् धातु अणिजन्त अवस्था में है। इसका कर्ता 'माणवक:' है। किन्तु जब यह गति अर्थवाली गम् धातु णिजन्त अवस्था में चली जाती है तब इसका कर्ता, कर्म बन जाता है-स गमयति माणवकं धर्मम् । इसी प्रकार अन्य उदाहरणों को भी समझ लेवें । कर्मसंज्ञाविकल्पः (५) हृक्रोरन्यतरस्याम् । ५३ । प०वि०-हृ-क्रो: ६ । २ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । स० - हृश्च कृश्च तौ - हृक्रौ तयो:-हृक्रो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु० - 'अणि कर्ता स णौ, कर्म' इत्यनुवर्तते । अन्वयः - हृक्रोरणि= अणौ यः कर्ता स णावन्यतरस्यां कर्म । अर्थ:- हृ-क्रोर्धात्वोः प्रयोगेऽण्यन्तावस्थायां यः कर्ता स ण्यन्तावस्थायां विकल्पेन कर्मसंज्ञको भवति, पक्षे कर्तृसंज्ञकश्च । यथा अण्यन्तावस्थायां यः कर्ता सः हरति माणवको भारम् धातो: (१) हृञ् हरणे (२) डुकृञ् करणे "" Jain Education International " करोति कटं देवदत्तः " ण्यन्तावस्थायां विकल्पेन कर्म (१) हारयति माणवकं भारम् । (२) हारयति माणवकेन भारम् । (१) कारयति कटं देवदत्तम् । (२) कारयति कटं देवदत्तेन । आर्यभाषा - अर्थ - (हक्रो:) हृ और कृ धातु के प्रयोग में (अणि) अण्यन्त अवस्था में जो (कर्ता) है (सः) उसकी (णौ) ण्यन्त अवस्था में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (कर्म) कर्मसंज्ञा होती है। पक्ष में कर्ता संज्ञा होती है। जैसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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