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________________ २२६ प्रथमाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-ग्रामादागच्छति। पर्वतादवरोहति। सार्थाद् हीन:। रथात् पतितः। आर्यभाषा-अर्थ-(अपाये) दो पदार्थों के विभाग हो जाने पर (ध्रुवम्) जो पदार्थ अवधिरूप है, (कारकम्) उस कारक की (अपादानम्) अपादान संज्ञा होती है। उदा०-ग्रामादागच्छति। वह ग्राम से आता है। पर्वतादवरोहति। वह पर्वत से उतरता है। सार्थाद् हीनः । वह अपने समुदाय से बिछुड़ गया। रथात् पतित: । वह रथ से गिर गया। सिद्धि-ग्रामादागच्छति देवदत्तः । देवदत्त ग्राम से आता है। यहां देवदत्त और ग्राम दो पदार्थ हैं, जो प्रथम परस्पर संयुक्त हैं। उन दोनों का अपाय विभाग (पृथग्भाव) हो जाने पर जो पदार्थ ध्रुव अर्थात् अवधिरूप है कि देवदत्त का कहां से विभाग हुआ है ? उस अवधिरूप कारक (कारण) की अपादान संज्ञा होती है और उसमें 'अपादाने पञ्चमी' (२।३।२८) से पञ्चमी विभक्ति हो जाती है। इसी प्रकार 'पर्वतादवरोहति आदि उदाहरणों को समझ लेवें। भयहेतुः (२) भीत्रार्थानां भयहेतुः ।२५। प०वि०-भी-त्रार्थानाम् ६।३ भय-हेतु: ११ । स०-भीश्च त्राश्च तौ-भीत्रौ, अर्थश्च अर्थश्च तौ-अर्थौ । भीत्रौ अर्थो येषां ते भीत्रार्थाः, तेषाम्-भीत्रार्थानाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहिः)। भयस्य हेतुरिति भयहेतु: (षष्ठीतत्पुरुषः)। अनु०-'अपादानम्' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-भीत्रार्थानां भयहेतु: कारकमपादानम् । अर्थ:-बिभेत्यर्थानां त्रायत्यर्थानां च धातूनां प्रयोगे योभयस्य हेतु:, तत् कारकम् अपादानसंज्ञकं भवति।। । उदा०-(बिभेत्यर्थानाम्) चौरेभ्यो बिभेति। चौरेभ्य उद्विजते। (त्रायत्यर्थानाम्) चौरेभ्यस्त्रायते। चौरेभ्यो रक्षति। __ आर्यभाषा-अर्थ-(भी-त्रार्थानाम्) डरना और रक्षा करना अर्थवाली धातुओं के प्रयोग में (भय-हेतु:) जो भयहेतु रूप (कारकम्) कारक है, उसकी अपादान संज्ञा होती है। उदा०-(बिभेति अर्थक) चौरेभ्यो बिभेति। वह चोरों से डरता है। चौरेभ्य उद्विजते। वह चारों से उद्विग्न (व्याकुल) होता है। (त्रायति-अर्थक) चौरेभ्यस्त्रायते। वह चौरों से पालन करता है (पीछा छुड़वाता है)। चौरेभ्यो रक्षति। वह चौरों से रक्षा करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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