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________________ प्रथमाध्यायस्य तृतीयः पादः । १८७ अर्थ:-अनाध्यानेऽर्थे वर्तमानाद् णे:-णिजन्ताद् धातो: कर्तरि आत्मनेपदं भवति, अणौ-अण्यन्तावस्थायां यत् कर्म णौ ण्यन्तावस्थायां चेयदि स कर्ता भवति। उदा०-(अणौ) आरोहन्ति हस्तिनं हस्तिपका:। (णौ) आरोहयते हस्ती स्वयमेव। ___ आर्यभाषा-अर्थ-(अनाध्याने) उत्कण्ठापूर्वक स्मरण न करने अर्थ में विद्यमान (णे:) णिजन्त धातु से (कतीरे) कर्तृवाच्य में (आत्मनेपदम्) आत्मनेपद होता है, (अणौ) अणिजन्त अवस्था में (यत्) जो (कर्म) है, (णौ) णिजन्त अवस्था में (चेत्) यदि (स:) वह (कर्ता) कर्ता बन जाता है। उदा०-(अण्यन्त) आरोहन्ति हस्तिनं हस्तिपकाः। पीलवान हाथी पर चढ़ते हैं। (ण्यन्त) आरोहयते हस्ती स्वयमेव । हाथी पीलवानों को स्वयं चढ़ाता है। सिद्धि-(१) आरोहयते । आड्+रह+णिच् । आ+रोह+इ। आरोहि+लट् । आरोहि+शप्+त। आरोहे+अ+ते। आरोहयते। यहां आपूर्वक रुह बीजजन्मनि प्रादुर्भाव च' (भ्वा०प०) धातु से हेतुमति च (३।१।२६) णिच्' प्रत्यय, पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से धातु को लघूपध गुण होकर णिजन्त धातु से लट्' प्रत्यय और उसके स्थान में आत्मनेपद त' आदेश होता है। (२) यहां अण्यन्त अवस्था में जो हस्तिनम् कर्म है वह ण्यन्त अवस्था में हस्ती' कर्ता बन जाता है। (३) अनाध्यान अर्थात् उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ का इसलिये निषेध किया है कि यहां आत्मनेपद न हो-स्मरति वनगुल्मस्य कोकिल: । कोयल वन-झाड़ी को उत्कण्ठापूर्वक स्मरण करती है। स्मरयत्येनं वनगुल्म: स्वयमेव । वन झाड़ी इसे स्वयं स्मरण कराती है। जिभी भये/स्मिङ् ईषद्हसने (भ्वा०आo) भीस्म्योर्हेतुभये।६८। प०वि०-भी-स्म्यो: पञ्चमी-अर्थे ६ ।२ हेतुभये ७।१। स०-भीश्च स्मिश्च तौ भीस्मी, तयो:-भीस्म्यो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। हेतोभयमिति हेतुभयम्, तस्मिन्-हेतुभये (पञ्चमीतत्पुरुषः)। अनु०-'णे:' इत्यनुवर्तते। अन्वय:-हेतुभये णे: भीस्म्यो: कतरि आत्मनेपदम् । अर्थ:-हेतुभयेऽर्थे वर्तमानाभ्यां णिजन्ताभ्यां भी-स्मिभ्यां धातुभ्यां कीर आत्मनेपदं भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003296
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1997
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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