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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् मुदात्तं शेषं चानुदात्तं भवति।
उदा०-क्व। शिक्यम्। कन्या'। सामान्य: ।
आर्यभाषा-अर्थ-(तस्य) उस उदात्त और अनुदात्त स्वर के समाहारवाले स्वरित स्वर के (आदित:) आदि में (अर्धह्रस्वम्) आधी ह्रस्व मात्रा (उदात्तम्) उदात्त होती है और शेष मात्रा अनुदात्त होती है।
उदा०-क्व । शिक्यम् । कन्या । सामान्यः।
सिद्धि-(१) क्व । यहां ह्रस्व स्वरित में आदिम आधी मात्रा उदात्त और आधी मात्रा अनुदात्त है। इसी प्रकार से-शिक्यम् में भी।
(२) कन्या । यहां दीर्घ स्वरित में आदिम आधी मात्रा उदात्त और शेष डेढ़ अनुदात्त है। इसी प्रकार से सामान्यः' में भी।
(३) माणवक३। यहां स्वरित में आदिम आधी मात्रा उदात्त और शेष अढ़ाई मात्रा अनुदात्त है।
विशेष-यहां महाभाष्यकार पतञ्जलि लिखते हैं कि समाहार' ऐसा कहने पर यहां सन्देह उत्पन्न होता है कि स्वरित में कितना भाग उदात्त है और कितना भाग अनुदात्त है और उसमें भी किस अवकाश में उदात्त और किस अवकाश में अनुदात्त है। आचार्य पाणिनि मुनि ने इस सूत्र के द्वारा हमारा मित्र बनकर यह बतलाया है कि स्वरित आदि में आधी मात्रा भाग उदात्त है और शेष भाग अनुदात्त होता है।
(व्याकरणमहाभाष्यम् १।२।३२)। __ स्वरों के भेद (१) ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत और उदात्त, अनुदात्त स्वरित तथा निरनुनासिक और सानुनासिक स्वरों के भेद हैं। उन्हें अधोलिखित तालिका से समझ लेवें।
स्वर
हस्व
उदात्त
अनुदात्त स्वरित अज
निरनुनासिक
अँ
उदात्त अनुदात्त स्वरित
अं
सानुनासिक
इस प्रकार 'अ' स्वर के १८ अठारह भेद होते हैं।
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