SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 ] पृष्ठ पंक्ति शुद्ध 56 -16 सब ये 59 13 60 5 61 20 29 63 7 65 21 67 68 69 9 10 72 11 15 12 25 मा 15 की 16 मूर्ति मंजकों 18 इसको 15 प्रारूप 486 पास नाना जनसान का कि गारषगिरि पूण्य कर 250 a o भेद के कारण बढ धनुषायों 18 26 भीमल 33 श्रावकों 35 इसको 70 22 भाप्त 23 जैन 29 9 एक रूप अप बाहर $30 भारत 71 4 प्रपवत्तित 14 मस्य ने... परिसीमध जैनों का विभाग का 10 15 ईद्वाकु 73 22 कठिस 24 फिर Jain Education International शुद ये सब - पोप 496 पास से नाना के पास जनसान था कि गोरगिरि पूज्य कह 520 पार्श्व का मूर्ति मंजको इसके भेद बढ अनुयायियों एक निगम रूप अपने से बाहर भीनमाल श्रावकों का इसका प्राप्त है जन प्रपेक्षाकृत तंग परिसीमाम्रों भारत में अपरिवसित " वैमनस्य जैनों के विभाग की ईक्ष्वाकु कठिन मौर 73 26 fter 29 उल्लेखों 74 8 रोहिलखण खण्ड 75 26 76 79. 32 77 8 26 80 पंक्ति पंक्ति अशुद्ध 81 उपलब्ध 31 ऐतिहासिक 89 91 28 31 82 18 86 3 ज्ञात का और अन्धकारों 13 17 18 931 8 94 4-5 8 24 4 95 96 24 104 2 4 30 4 26 नंदनी 1 यह स्पष्ट पश्चात् 1 ग्रीरा 5 fr 8 पालना 9 को वीतमय थे राजज्योतिषि नाम म्भवतया सो वीर को पश्चिक के धनहिज मृगावती धोर सानीक 2 य दीएक राजों केसा फी यही का बड़ा घनपद सम्बन्ध धन्यासियो सन्देह अभिलिखित श्रेणिक का अवध ऐतिहासिक उल्लेख किये हैं परन्तु इनको संसार के इतिहास ज्ञात फिर अधिकारों थे। राजनमि For Private & Personal Use Only शुद्ध उल्लेखों से रोहिलखण्ड लंदनी पश्चात् ग्रीस त्रिशला लिच्छवी पालता के वीतभय संभवतया सो वीर पश्चिम को नहिल और मृगावती ससानीक द्वितीय दीपक राजाओं के साथ का का यही बाड़ा जनपद सम्बद्ध अनुयायियों सन्देश अच्छी समितिसित श्रेणिक को www.jainelibrary.org
SR No.003290
Book TitleUttar Bharat me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal J Shah, Kasturmal Banthiya
PublisherSardarmal Munot Kuchaman
Publication Year1990
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy