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[ 203 बताता है कि जैनो की पूजाविधि पर तांत्रिक-प्रागमों का जिनमें पूजनीय देव शिव है, अच्छा प्रभाव पड़ गया था।
इस प्रकार जैसा कि हम ऊपर देख आए हैं, यह निर्विवाद है कि जैन इतिहास का अनभिलिखित युग भी साहित्य शून्य नहीं है । उस युग का भी प्राचीन साहित्य लिखा हुआ मिलता है। इस युग के जैन दन्तकथा साहित्य का हमारा यह सर्वेक्षण चूडाँन्त नहीं कहा जा सकता है, फिर भी ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस युग का जैन साहित्य अन्य भारतीय साहित्य की तुलना में क्या गुण और क्या विविधता किसी भी दिशा में जरा भी कम नहीं था । इस जैन साहित्य में सभी विषय के ग्रन्थ उपलब्ध हैं। ऐसे ग्रन्थ ही नहीं कि जिनका सिद्धात से निकटतम सम्बन्ध है, याने सैद्धांतिक, नैतिक, वादानुवादात्मिक और पक्ष-समर्थक अपितु इतिहास, दन्तकथा, महाकाव्य, रोमांचक, एवम् वैज्ञानिक जैसे कि खगोल, और भविष्य-कथन विषयक भी जैनाचार्यों ने उस काल में लिखे थे ।
1. झवेरी, वही, प्रस्ता. पृ. 5।
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