________________
184]
4. दस पहण अथवा प्रकीर्णानि :
1. चउसररण (चतु: शरण ।
3. मक्तपरिष्ण (भक्त परिज्ञा) ।
5. तंडुलयालय (?) |
7. देविदत्थव (देवेन्द्रस्तव) ।
9. महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान ) ।
5. छह छेद सूत्र
1. निसीह (निशीत्थ) ।
3. व्यवहार (व्यवहार) । 5. बृहत्कल्प ।
6. चार मूल सूत्र :
1. उत्तरउभयण (उत्तराध्ययन) ।
3. दशवेयालिय (दशकालिक) ।
7. दो सूत्र
:
1. नन्दीसुत्त (नन्दीसूत्र ) ।
2. उरपञ्चवाण ( आतुरप्रत्याख्यान ) । 4. संचार (संस्तार) |
6. चंदाविमा (चन्द्रवेध्यक) ।
8. गरिगविज्जा ( गरिणत विद्या) । 10. वीरत्थव ( वीरस्तव) ।
Jain Education International
2. महानिसीह ( महानिशीथ ) ।
4. प्रायारदसाओ (प्राचारदशाः), यावेसासूपरकंध (दशाभूतस्कंध ।
6. पंचकल्प ।
2. प्रणयोगदारसुत (धनुयोगद्वारसूत्र ) ।
उपरोक्त सब सिद्धान्त ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ही हैं क्योंकि दिगम्बरों ने इन्हें अस्वीकार कर दिया है। दिगम्बरों की यह दन्तकथा उस भीषण दुष्काल से सम्बन्धित है कि जो मगध में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य काल में पड़ा था। भद्रबाहुं और उनके शिष्यों के दक्षिण प्रवास के पश्चात् जैनधर्म के पवित्र सिद्धान्त ग्रन्थों का विस्मरण द्वारा नाश होने का भय उपस्थित हो गया और स्थूलभद्र एवम् उसके शिष्यों ने एक परिषद् उन साधुत्रों निमंत्रित की कि जो उधर ही रह गए थे। यह परिषद ई. पूर्व तीसरी सदी में मौर्य साम्राज्य की राजधानी एवम् जनसंध के इतिहास में प्रसिद्ध पाटलीपुत्र में एकत्रित हुई थी। जैनों की इस परिषद ने जैसा कि डा. शार्पेटियर कहता है, 'बहुत कुछ वही कार्य किया होगा कि जो बौद्धों की पहली संगीति याने परिषद ने किया था ।"" इस परिषद ने अंगों और पूर्वो दोनों का ही पाठ स्थिर किया और यही से सिद्धान्त की प्रथम भूमिका प्रारम्भ हुई । परन्तु दक्षिण से लौटने वाले मुनियों को सिद्धान्त के इस प्रकार स्थिर किए पाठ से सन्तोष नहीं हुआ उनने इस सिद्धांत को मानने से इन्कार ही नहीं किया अपितु यह भी घोषित कर दिया कि पूर्व ज्ञान और अंश ज्ञान दोनों ही विच्छेद
2. आवस्य (आवश्यक) ।
4. पिडनिज्जुत्ति (पिण्डनिपुं क्ति) ।
1. शार्पेटियर, वही, प्रस्तावना पृ. 14 |
- बाहु रचित थे जैसे कि कल्पसूत्र, स्थिर हुए ।' वही । इसलिए पाटलीपुत्र में
2. 'इस प्रकार, स्थूलभद्र की दन्तकथानुसार, पहले दस पूर्व और अंगों का सिद्धान्त और अन्य शास्त्र जो कि भद्रएक परिषद बुलाई गई जिसमें अंगद्विद्विवाय नाम को संग्रहित इण्डिया, पृ. 75; याकोबी, लिए देखो परिशिष्ट पर्वन् सगँ
ग्यारह अंग संकलित किए गए और हुआ ।' विटर्निट्ज, वही, पृ. 293 कल्पसूत्र, प्रस्ता. पु. 11, 15 9 श्लोक 55-76, 101-103
14 पर्वो में से बच रहे पूर्व का 12 वां देखो फार्कहर रिलीजस लिटरेचर श्राफ पाटलीपुत्र की परिषदे का हेमचन्द्र के दर्शन के
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org