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________________ ७४ ] प्रवचनसारः अथ परमाणूनां पिण्डत्वस्य यथोदितहेतुत्वमवधारयति द्वित्तणेण दुगुणो चद्गुणणिद्वेण बंधमणुभवदि । लक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुन्तो ॥ ७४ ॥ स्निग्धत्वेन द्विगुणश्चतुर्गुणस्निग्धेन बन्धमनुभवति । रूक्षेण वा त्रिगुणतोऽणुर्बध्यते पञ्चगुणयुक्तः ॥ ७४ ॥ यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिण्डत्वमवधार्य द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपञ्चगुणयोश्च द्वयोः स्निग्धयोः द्वयोरूक्षयोर्द्वयोः स्निग्धरूक्षयोर्वा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धेः । उक्तं च “णिद्धा णिद्वेण बज्झति लक्खा लुक्खा य पोग्गला । णिद्ध लुक्खा य बज्झति रूवारूवी य पोग्गला ||” “णिद्धस्स तमेवार्थं विशेषेण समर्थयति — गुणशब्द वाच्यशक्तिद्वययुक्तस्य स्निग्धपरमाणोश्चतुर्गुणः स्निग्धेन रूक्षेण वा समशब्दसंज्ञेन तथैव त्रिशक्तियुक्तरूक्षस्य पञ्चगुणरूक्षेण स्निग्धेन वा विषमसंज्ञेन द्विगुणाधिकत्वेन सति बन्धो भवतीति ज्ञातव्यम् । अयं तु विशेषः –— परमानन्दैकलक्षणस्वसंवेदज्ञानबलेन हीयमानरागद्वेषत्वे सति पूर्वोक्तजलवालुकादृष्टान्तेन यथा जीवानां बन्धो न भवति तथा जघन्यस्त्रिग्धरूक्षत्वगुणे सति परमाणूनां चेति । बंध नहीं होता || ७३ || आगे किस तरह बंध होता है, यह दिखलाते हैं - [ स्निग्धत्वेन ] चिकनेपनेसे [ द्विगुणः ] दो अंशरूप परिणत परमाणु [ चतुर्गुणस्निग्धेन ] चार अंशरूप परिणत हुए परमाणु [बंधं ] बंध अवस्थाको [ अनुभवति ] प्राप्त होता है, [वा ] अथवा [रूक्षेण] रूखेपनेसे [त्रिगुणितः ] तीन अंशरूप परिणत परमाणु [ पञ्चगुणयुक्तः ] पाँच अंशरूप परिणत हुए परमाणुसे संयुक्त हुआ [अनुबध्यते ] बंधको प्राप्त होता है। भावार्थ - एक परमाणुमें दो अंश स्निग्ध हों, तथा दूसरे परमाणुमें चार अंश हों, तो दोनों परमाणुओंका आपसमें बंध होता है । अथवा एकमें चार अंश हों, तथा दूसरेमें छह अंश हों, तो भी बंध होता है । इस प्रकार अपने अनंत अंश भेद तक दो अंश अधिक स्निग्धता से स्निग्ध परमाणुओंका अथवा स्कंधोंका बंध जानना । तथा एक परमाणु तीन अंश रूक्ष हो, और दूसरा परमाणु पाँच अंश रूक्ष हो, तो दोनोंका बंध होता है, अथवा एक परमाणु पाँच अंश दूसरा सात अंश हो, तो भी बंध होता है। इस प्रकार अपने अंश भेद तक दो अंश अधिक रूक्षतासे रूक्ष परमाणुओंका अथवा स्कंधोंका बंध जानना चाहिये । एक परमाणुमें दो अंश रूखेपनेके हैं, और दूसरे परमाणुमें चार अंश स्निग्धताके हैं, तो भी बंध होता है, इस प्रकार दो अंश अधिक स्निग्ध रूक्ष गुणोंके अंशोंसे भी परमाणु तथा स्कंधोंका बंध जानना चाहिये। इससे यह बात सिद्ध हुई, कि स्निग्धतासे दो अंश अधिक स्निग्धताकर बंध होता है, तथा रूक्षतासे दो अंश अधिक रूक्षताकर बंध होता हैं, और रूक्षता स्निग्धतामें भी दो अंश अधिक होनेसे बंध होता है । जो दो परमाणुओंमें अंश बराबर हों, तो बंध नहीं होता, और जो एक अंश अधिक हो, तो भी बंध होना संभव नहीं है, परंतु जब दो अंश अधिक हों, तभी बंध हो सकता है, दूसरी तरह बंध होनेकी योग्यता नहीं है । तथा जो एक अंश चिकनाई अथवा रूखाई हो, तो भी बंध नहीं होता, क्योंकि एक अंश अति जघन्य है इस कारण बंध योग्य नहीं है। दो अंशसे लेकर आगे Jain Education International २०७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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