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कुन्दकुन्दविरचितः
[अ० २, गा० ४०वर्णरसगन्धस्पर्शा विद्यन्ते पुद्गलस्य सूक्ष्मसात् ।।
पृथिवीपर्यन्तस्य च शब्दः स पुद्गलश्चित्रः॥४०॥ इन्द्रियग्राह्याः किल स्पर्शरसगन्धवर्णास्तद्विषयवात् , ते चेन्द्रियग्राह्यखव्यक्तिशक्तिवशात् गृह्यमाणा अगृह्यमाणाश्च आ एकद्रव्यात्मकसूक्ष्मपर्यायात्परमाणोः, आ अनेकद्रव्यात्मकस्थूलपर्यायात्पृथिवीस्कन्धाच्च सकलस्यापि पुद्गलस्याविशेषेण विशेषगुणवेन विद्यन्ते । ते च भूतखादेव शेषद्रव्याणामसंभवन्तः पुद्गलमधिगमयन्ति । शब्दस्यापीन्द्रियग्राह्यखाद्गुणवं न खल्वापोग्गलस्स वर्णरसस्पर्शगन्धा विद्यन्ते । कस्य । पुद्गलस्य । कथंभूताः । सुहुमादो पुढवीपरियंतस्स य "पुढवी जलं च छाया चउरिदियविसयकम्मपरमाणू । छव्विहभेयं भणियं पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं ॥” इति गाथाकथितक्रमेण परमाणुलक्षणसूक्ष्मस्वरूपादेः पृथ्वीस्कन्धलक्षणस्थूलस्वरूपपर्यन्तस्य च । तथाहि-यथानन्तज्ञानादिचतुष्टयं विशेषलक्षणभूतं यथासंभवं सर्वजीवेषु साधारणं तथा वर्णादिचतुष्टयं विशेषलक्षगभूतं यथासंभवं सर्वपुद्गलेषु साधारणम् । यथैव चानन्तज्ञानादिचतुष्टयं मुक्तजीवेऽतीन्द्रियविषयज्ञानमनुमानगम्यमा[विद्यन्ते] मौजूद हैं, [च] और जो [शब्दः] शब्द है, [सः] वह [पौद्गलचित्रः] भाषा ध्वनि आदिके भेदसे अनेक प्रकारवाला पुद्गलका पर्याय है। भावार्थ-पुद्गलद्रव्य सूक्ष्मसूक्ष्म १, सूक्ष्म २, सूक्ष्मस्थूल ३, स्थूलसूक्ष्म ४, स्थूल ५, स्थूलस्थूल ६ छह प्रकारका कहा गया है । उनमें से परमाणु सूक्ष्मसे सूक्ष्म है १, कार्माण (कर्म होने योग्य) वर्गणा सूक्ष्म हैं २, स्पर्श, रस, गंध, शब्द ये सूक्ष्मस्थूल हैं, क्योंकि नेत्र-इंद्रियसे नहीं देखे जाते, इसलिये सूक्ष्म हैं, तथा चार इंद्रियोंसे जाने जाते हैं, इसलिये स्थूल भी हैं ३, छाया (परछाँई) स्थूलसूक्ष्म है, क्योंकि नेत्रसे देखनेमें आती है, इसलिये स्थूल है, तथा हाथसे ग्रहण नहीं की जाती, इसलिये सूक्ष्म भी है ४, जल, तैल आदिक स्थूल हैं, क्योंकि छेदन भेदन करनेसे फिर उसी समय मिल जाते हैं ६, पृथिवी, पर्वत, काठ वगैरः स्थूलस्थूल हैं। इस प्रकार भेदोंसे पुद्गल द्रव्य अनेक प्रकार है । ये स्पर्शादि चारों गुण इन्द्रियोंसे जाने जाते हैं। यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि परमाणु कार्मणवर्गणादिकमें भी ये चार गुण हैं, वे अत्यन्त सूक्ष्मरूपसे वहाँ रहनेपर इन्द्रियोंसे प्रत्यक्ष ही नहीं हो सकते, तो इनको इन्द्रिय-ग्राह्य किस तरह कहते हो? इसका समाधान यह है, कि परमाणु आदि पुद्गल यद्यपि इन्द्रिय-प्रत्यक्ष नहीं हैं, तो भी उनमें इंद्रिय ग्रहण योग्य शक्ति अवश्य मौजूद है, जब स्कंधके संबंध होनेसे स्थूलपना धारण करते हैं, तब इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष नियमकर होते हैं। इस कारण व्यक्ति-शक्तिकी अपेक्षा ग्रहण किये जावें, अथवा नहीं किये जावें, परंतु इन्द्रिय-ग्रहण योग्य अवश्य हैं। सभी छह प्रकारके पुद्गलोंके स्पर्शादि चार गुण नियमसे पाये जाते हैं, अमूर्त द्रव्यके ये चारों नहीं पाये जाते, इसी लिये ये गुण पुद्गलके चिह्न हैं। शब्द भी कर्ण-इन्द्रियसे ग्रहण किया जाता है, परंतु वह पुद्गलकी पर्याय है, गुण नहीं है, क्योंकि अनेक पुद्गलस्कंघोंके संयोगसे उत्पन्न होता है, इसलिये पर्याय है । जो कोई अन्यवादी शब्दको आकाशद्रव्यका गुण मानते हैं, उनका कहना अप्रमाण है, क्योंकि आकाशद्रव्य अमूर्तीक है, इसलिये इंद्रिय-प्रत्यक्ष नहीं होता, और कर्ण-इन्द्रियसे ग्रहण किया जाता है । नियम ऐसा है,
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