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प्रवचनसारः तु प्रतिसमयोत्पादमुद्रितानां प्रत्येकं द्रव्याणामानन्त्यमसदुत्पादो वा । धौव्ये तु क्रमभुवां भावानामभावाद्रव्यस्याभावः क्षणिकखं वा । अत उत्पादव्ययध्रौव्यैरालम्ब्यन्तां पर्यायाः पर्यायैश्च द्रव्यमालम्ब्यतां, येन समस्तमप्येतदेकमेव द्रव्यं भवति ॥ ९॥ अथोत्पादादीनां क्षणभेदमुदस्य द्रव्यत्वं द्योतयति
समवेदं खलु दव्वं संभवठिदिणाससण्णिदद्वेहिं । एकम्मि चेव समये तम्हा दव्वं खु तत्तिदयं ॥ १० ॥ समवेतं खलु द्रव्यं संभवस्थितिनाशसंज्ञिताः ।
एकस्मिन् चैव समये तस्माद्रव्यं खलु तत्रियम् ॥१०॥ इह हि यो नाम वस्तुनो जन्मक्षणः स जन्मनैव व्यासत्वात् स्थितिक्षणो नाशक्षणश्च न भवति । यश्च स्थितिक्षणः स खलूभयोरन्तरालदुर्ललितखाजन्मक्षणो नाशक्षणश्च न भवति । यश्च नाशक्षण: पूर्वोक्तोत्पादादित्रयस्य तथैव स्वसंवेदनज्ञानादिपर्यायत्रयस्य चानुगताकारेणान्वयरूपेण यदाधारभूतं तदन्वयद्रव्यं भण्यते, तद्विषयो यस्य स भवत्यन्वयद्रव्यार्थिकनयः यथेदं ज्ञानाज्ञानपर्यायद्वये भङ्गत्रयं व्याख्यातं तथापि सर्वद्रव्यपर्यायेषु यथासंभवं ज्ञातव्यमित्यभिप्रायः ॥ ९ ॥ अथोत्पादादीनां पुनरपि प्रकारान्तरेण द्रव्येण सहाभेदं समर्थयति समयभेदं च निराकरोति-समवेदं खलु दव्वं समवेतमेकीभूतमभिन्नं भवति खलु स्फुटम् । किम् । आत्मद्रव्यम् । कैः सह संभवठिदिणाससण्णिदटेहिं सम्यक्त्वज्ञानपूर्वकनिश्चलउत्पन्न होनेसे अनन्त द्रव्य हो जावें, और जो द्रव्य ध्रुव होवे, तो पर्यायका नाश होवे, और पर्यायके नाशसे द्रव्यका भी नाश हो जावे । इसलिये उत्पादादि द्रव्यके आश्रित नहीं हैं, पर्यायके आश्रित हैं। पर्याय उत्पन्न भी होते हैं, नष्ट भी होते हैं, और वस्तुकी अपेक्षा स्थिर भी रहते हैं । इस कारण वे पर्यायमें हैं, पर्याय द्रव्यसे जुदे नहीं हैं, द्रव्य ही हैं। पर्यायकी अपेक्षा द्रव्योंमें उत्पादादिक तीन भाव जानना चाहिये ॥ ९ ॥ आगे इन उत्पादादिकोंमें समय भेद नहीं है, एक ही समयमें द्रव्यसे अभेदरूप होते हैं, यह प्रगट करते हैं-[द्रव्यं] वस्तु [संभवस्थितिनाशसंज्ञिताथैः] उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नामक भावोंसे [खला निश्चयकर [समवेतं] एकमेक है, जुदी नहीं है, [च] और वह [एकस्मिन् एव समये] एक ही समयमें उनसे अभेदरूप परिणमन करती है। [तस्मात् ] इस कारण [खलु] निश्चयकरके [तत् त्रितयं] वह उत्पादादिकत्रिक [द्रव्यं] द्रव्यस्वरूप है-एक ही है । भावार्थ-यहाँ कोई वितर्क करे, कि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य एक समयवर्ती हैं यह सिद्धान्त ठीक नहीं हैं, इन तीनोंका समय जुदा जुदा है, क्योंकि जो समय उत्पादका है, वह उत्पाद ही से व्याप्त है, वह ध्रौव्य-व्ययका समय नहीं है । जो ध्रौव्यका समय है, वह उत्पाद-व्ययके मध्य है, इससे भी जुदा ही समय है । और जो नाशका समय है, उस समय उत्पाद-ध्रौव्य नहीं हो सकते । इस कारण यह समय भी पृथक् है । इस प्रकार इनके समय पृथक् पृथक् संभव होते हैं; सो इस कुतर्कका समाधान आचार्य महाराज इस प्रकार करते हैं कि, "जो द्रव्य आपही उत्पन्न होता, आप ही स्थिर होता, आप
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