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________________ १६. राजकीय इतिहासकी दृष्टिसे प्रतियोंका संकलन । १७. सुनहरी और रुपहरी अक्षरोंमें लिखित सचित्र कल्पसूत्र आदि। १८. सचित्र ताड़पत्रीय तथा कागज़की प्रतियाँ । १९. चित्रशोभन, रिक्तलिपिचित्रमय, लिपिचित्रमय, अंकचित्रमय, चित्रकर्णिका, चित्रपुष्पिका, चित्रकाव्यमय प्रतियाँ । २०. विज्ञप्तिपत्र एवं वर्धमान-विद्या आदिके पट । २१. अनेक प्रकारके बाज़ी, गंजीफे आदि। २२. जीर्ण-शीर्ण, सड़ी-गली प्रतियाको कागज़ आदि चिपका कर उनका पुनरुद्धार करनेकी कला प्रदर्शित करनेवाला ग्रन्थसंग्रह । २२. ताड़पत्र, कागज़ आदिके नमूने । २४. लेखनकी सामग्री-दावात, कलम, तूलिका (पींछी), ग्रन्थी, बट्टे, ओलिए, जुजवल, प्राकार, स्याही, हरताल आदि। २५. भिन्न भिन्न प्रकारके सचित्र सुन्दर डिब्बे और पाठे। __ ऊपर जो विभाग दिए गए हैं उनमेंसे कुछ ऐसे भी हैं जिनका यदि स्वतंत्र विवेचन न किया जाय तो उनके बारेमें स्पष्ट ख्याल नहीं आ सकता। परन्तु इस संक्षिप्त लेखमें उनका विवेचन देना शक्य नहीं है। प्रस्तुत विभागोंमें श्रावका सावदेवकी सुन्दर लिपिमें लिखी हुई एक ताड़पत्रीय प्रति है । हमारे ज्ञानभाण्डारोंमें पुरुष लेखक - साधु किंवा श्रावक द्वारा लिखित ग्रन्थोंकी नक़लें तो सैकड़ों और हज़ारोंकी संख्यामें मिलती हैं, परन्तु साध्वियों एवं श्राविकाओंके हाथकी लिखी हुई प्रतियाँ तो कभी कभीविरल ही देखनेमें आती हैं । मेरे प्रगुरु पूज्य प्रवर्तक दादा श्रीकान्तिविजय महाराजश्रीने मेड़ताके ज्ञानभाण्डारमें श्राविका रुपादेके हाथकी लिखी हुई मलयगिरिकी आवश्यकवृत्तिकी प्रति देखी थी, परन्तु आज वह प्रति वहाँके भाण्डारमें नहीं है। इस समय तो हमारे सम्मुख प्राचीन गिनी जा सके ऐसी यही एक मात्र प्रति है और वह है खम्भातके शान्तिनाथ-भाण्डारमें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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