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________________ बना ली जाती थी अथवा आजकी तरह तैयार भी अवश्य मिलती होंगी। स्याही आदि घोंटनेके लिये बट्टे भी अकीक आदि अनेक प्रकारके पत्थरके बनते थे। इनके अतिरिक्त ताडपत्रीय ग्रन्थोके जमानेमें ग्रन्थके विभाग अथवा विशिष्ट विषयकी खोजमें दिक्कत या महेनत न हो इसलिये ताड़पत्रके सुराख में धागा पिरोकर और उसके अगले हिम्सेको ऐंठन लगाकर बाहर दिखाई दे इस तरह उसे रखते थे। संशोधन के चित्र और संकेत ___जस तरह आधुनिक मुद्रणके युगमें विद्वान् ग्रन्थ सम्पादक तथा संशोधकोंने पूर्णविराम, अल्पविराम, प्रश्नविराम, आश्चर्यदर्शक चिह्न आदि अनेक प्रकारके चिह्न - संकेत पसन्द किए हैं उसी तरह प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकोंके जमानेमें भी उनके संशोधक विद्वानोंने लिखित ग्रन्थोंमें व्यर्थ काट-छाट, दाग़-धब्बा आदि न हो, टिप्पन या पर्यायार्थ लिखे बिना वस्तु स्पष्ट समझमें आ जाय इसके लिये अनेक प्रकारके चिह्न किंवा संकेत पसंद किए थे, जैसे कि ---- (१) गलितपाठदर्शक चिह्न, (२) गलितपाठविभागदर्शक चिह्न, (३) 'काना दर्शक चिह्न, (४) अन्याक्षरवाचनदर्शक चिह्न, (५) पाठपरावृत्तिदर्शक चिह्न (६) स्वरसन्ध्यंशदर्शक चिह्न, (७) पाठान्तरदर्शक चिह्न, (८) पाठानुसन्धानदर्शक चिह्न, (९) पदच्छेददर्शक चिह्न, (१०) विभागदर्शक चिह्न, (११) एकपददर्शक चिह्न, (१२) विभक्तिवचनदर्शक चिह्न, (१३) टिप्पनक (विशेष नोट्स ) दर्शक चिह्न, (१४) अन्वयदर्शक चिह्न, (१५) विशेषण-विशेष्यसम्बन्धदर्शक चिह्न और (१६) पूर्वपदपरामर्शक चिह्न । चिह्नोंके ये नाम किसी भी स्थानपर देखने में नहीं आए परन्तु उनके हेतुको लक्षमें रखकर मैंने स्वयं ही इन नामोंकी आयोजना की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003284
Book TitleGyanbhandaro par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1953
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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