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पूर्णि आदिमें आता है। जिस तरह पुस्तकोंके आकार-प्रकार परसे उन्हें उपर्युक्त नाम दिए गए है उसी तरह बादके समयमें अर्थात् पन्द्रहवीं शतीसे पुस्तकोंकी लिखाईके आकार-प्रकार परसे उनके विविध नाम पड़े हैं; जैसे कि शूड अथवा शूढ पुस्तक, द्विपाठ पुस्तक, त्रिपाठ पुस्तक, पंचपाठ पुस्तक, सस्तबक पुस्तक । इनके अतिरिक्त चित्रपुस्तक भी एक प्रकारान्तर है। चित्रपुस्तक अर्थात् पुस्तकोंमें खींचे गए चित्रोंकी कल्पना कोई न करे । यहाँ पर 'चित्रपुस्तक' इस नामसे मेरा आशय लिखावटकी पद्धतिमें से नष्पन्न चित्रसे है। कुछ लेखक लिखाईके बीच ऐसी सावधानीके साथ जगह बाली छोड़ देते हैं जिससे अनेक प्रकारके चौकोर, तिकोन, षट्कोण, छत्र त्वस्तिक, अग्निशिखा, वज्र, डमरू, गोमूत्रिका आदि आकृतिचित्र तथा लेखकवे वेवक्षित ग्रन्थनाम, गुरुनाम अथवा चाहे जिस व्यक्तिका नाम या श्लोकगाथा आदि देखे किंवा पढ़े जा सकते हैं । अतः इस प्रकारके पुस्तकक हम ‘रितलिपिचित्रपुस्तक ' इस नामसे पहचानें तो वह युक्त ही होगा। इस प्रकार, ऊपर कहा उस तरह, लेखक लिखाईके बीचमें ख़ाली जगह न छोड़क काली स्याहीसे अविच्छिन्न लिखी जाती लिखावटके बीचमें के अमुक अमुक अक्षर ऐसी सावधानी और खूबीसे लाल स्याहीसे लिखते जिससे उस लिखा वटमें अनेक चित्राकृतियाँ, नाम अथवा श्लोक आदि देखे-पढ़े जा सकते ऐसी चित्रपुस्तकोंको हम 'लिपिचित्रपुस्तक 'के नामसे पहचान सकते हैं इसके अतिरिक्त 'अंकस्थानचित्रपुस्तक' भी चित्रपुस्तकका एक दूसर प्रकारान्तर है । इसमें अंकके स्थानमें विविध प्राणी, वृक्ष, मन्दिर आदिक आकृतियाँ बनाकर उनके बीच पत्रांक लिखे जाते हैं। चित्रपस्तकके ऐ कितने ही इतर प्रकारान्तर हैं।
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