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लिखी जिनेश्वरीय 'कथाकोश' की प्रति है। जैन भाण्डारों में पाई जानेवाली काग़जंकीं पोथियोंमें यह सबसे पुरानी है । आठ सौ वर्षके बाद आज भी उसके कागज़ की स्थिति अच्छी है । उपाध्याय श्री यशोविजयजी के स्वहस्तलिखित कई ग्रन्थ, जैसे कि विषयताबाद, स्तोत्रसंग्रह आदि, उसी भाण्डारसे अभी अभी मुझे मिले हैं। जेसलमेरके एक कागज़के भाण्डारमें न्याय और वैशेषिक दर्शनके सूत्र, भाग्य, टीका, अनुटीका आदिका पूरा सेट बहुत शुद्ध रूप में तथा सटिप्पण विद्यमान है, जो वि. सं. १२७९ में लिखा गया है । अहमदावादके केवल दो भाण्डारोंका ही मैं निर्देश करता हूँ | पगथियाके उपाश्रयके संग्रहमेंसे उपाध्याय श्री यशोविजय जीके स्वहस्तलिखित प्रमेयमाला तथा वीतरागस्तोत्र अष्टम प्रकाशकी व्याख्या- ये दो ग्रन्थ अभी अभी आचार्य श्री विजय मनोहरसूरिजी द्वारा मिले हैं। बादशाह जहाँगीर द्वारा सम्मानित विद्वान् भानुचन्द्र और सिद्धिचन्द्र रचित कई ग्रन्थ इसी संग्रहमें हैं, जैसे कि नैषधकी तथा वासवदत्ताकी टीका आदि। देवशा के पाडेका संग्रह भी महत्त्वका है । इसमें भी भानुचन्द्र, सिद्धिचन्द्रके अनेक ग्रन्थ सुने गए हैं।
पाटन
कपड़े पर पत्राकारमें लिखा अभी तक एक ही ग्रन्थ मिला है, जो गत श्रीसंघ भण्डारका है। यों तो रोल - टिप्पनेके आकार के कपड़े पर लिखे हुए कई ग्रन्थ मिले हैं, पर पत्राकार लिखित यह एक ही ग्रन्थ है ।
सोने-चाँदीकी स्याहीसे बने तथा अनेक रंगवाले सैकड़ों नानाविध चित्र जैसे ताड़पत्रीय ग्रन्थो पर मिलते हैं वैसे ही कागज़ के ग्रन्थों पर भी हैं । इसी तरह कागज़ तथा कपड़े पर आलिखित अलंकारखचित विज्ञप्तिपत्र, चित्रपट भी बहुतायत से मिलते हैं, पाठे (पढ़ते समय पन्ने रखने तथा प्रताकार ग्रंथ बाँधने के लिये जो दोनों ओर गत्ते रखे जाते हैं - पुट्ठे), डिब्बे आदि भी सचित्र तथा विविध आकारके प्राप्त होते हैं । डिब्बोंकी एक खूबी यह भी है कि उनमें से कोई चर्मजटित हैं, कोई वस्त्र जटित हैं तो कोई कागज़से मढ़े हुए हैं । जैसी आजकलकी छपी हुई पुस्तकोंकी जिल्दों पर रचनाएँ देखी जाती हैं वैसी इन डिब्बों पर भी ठप्पोंसे - साँचोंसे ढाली हुई अनेक तरहकी रंग-बिरंगी रचनाएँ हैं।
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