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(४२) दसवेयालिय (तइयं मूलसुत्त) अ.१०/ पढमाचुला
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कट्ठनिस्सियाणं । तम्हा उद्देसियं न भुजे नो वि पए न पयावए जे, स भिक्खू ॥४॥ ५२५. रोइय नायपुत्तवयणं अत्तसमे मन्नेज्न छप्पि काए। पंच य फासे महव्वयाइं पंचासवसंवरए जे, स भिक्खू ॥५॥ ५२६. चत्तारि वमे सया कसाए धुवजोगी य हवेज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूव-रयए गिहिजोगं परिवज्जए जे, स भिक्खू ||६|| ५२७. सम्मदिट्ठी सया अमूढे अत्थि हुनाणे तवे य संजमे य। तवसा धुणाई पुराणपावगं मण-वय-कायसुसंवुडे जे, स भिक्खू ॥७|| ५२८. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइम साइमं लभित्ता । होही अट्ठो सुए परे वा तं न निहे न निहावए जे, स भिक्खू ।८।। ५२९. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइम साइमं लभित्ता। छंदिय साहम्मियाण भुंजे भोच्चा सज्झायरए य जे, स भिक्खू ।।९।। ५३०. न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमधुवजोगजुत्ते उवसंते अविहेडए जे, स भिक्खू ॥१०॥ ५३१. जो सहइ हु गामकंटए अक्कोस-पहार-तज्जणाओ य । भय-भेरवसहसप्पहासे समसुह-दुक्खसहे य जे, सभिक्खू ॥११॥ ५३२. पडिमं पडिवज्जिया मसाणे नो भाए भय-भेरवाइं दिस्स। विविहगुण-तवोरए य निच्वं न सरीरं चाभिकंखई जे, स भिक्खू॥१२॥ ५३३. असई वोसट्ठ-चत्तदेहे अक्कुठे व हए व लूसिए वा । पुढविसमे मुणी हवेज्जा अनियाणे अकोउहल्ले यजे, स भिक्खू॥१३॥ ५३४. अभिभूय काएण परीसहाई समुद्धरे जाइपहाओ अप्पयं । विइत्तु जाई-मरणं महन्भयं तवे रए सामणिए जे, स भिक्खू ॥१४॥५३५. हत्थसंजए पायसंजए वायसंजए संजइंदिए। अज्झप्परए सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं च वियाणई जे, स भिक्खू ॥१५|| ५३६. उवहिम्मि अमुच्छिए अगढिए अण्णायउंछं पुलनिप्पुलाए। कय-विक्कय-सन्निहिओ विरए सव्वसंगावगए य जे, स भिक्खू ॥१६॥ ५३७. अलोलो भिक्खू न रसेसु गिद्धे उंछं चरे जीविय नाभिकंखे । इडिं च सक्कारण पूयणं च चए ठियप्पा अणिहे जे, स भिक्खू ॥१७|| ५३८. न परं वएज्जासि 'अयं कुसीले जेणऽन्नो कुप्पेज्ज न तं वएज्जा । जाणिय पत्तेय पुण्ण-पावं अत्ताणं न समुक्कस्से जे, स भिक्खू ।।१८।। ५३९. न जाइमत्ते न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता धम्मज्झाणरए य जे, स भिक्खू ||१९|| ५४०. पवेयए अज्जपयं महामुणी धम्मे ठिओ ठावयई परं पि । निक्खम्म वज्जेज्ज कुसीललिंगं न यावि हासं कहए जे, स भिक्खू ॥२०|| ५४१.तं देहवासं असुई असासयं सया चए निच्चहियट्ठियप्पा । छिदित्तु जाई-मरणस्स बंधणं उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई ॥२१॥ त्ति बेमि ।। ।। सभिक्खूअज्झयणं दसमं समत्तं ॥१०॥★★★११ पढमा रइवक्का चूला-एक्कारसमं अज्झयणं *५४२. इह खलु भो ! पव्वइएणं उप्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाई इमाइं अट्ठारस ठाणाई सम्म संपडिलेहियव्वाइं भवंति। तं जहा हंभो ! दुस्समाए दुप्पजीवी १ । लहुस्सगा इत्तिरिया गिहीणं कामभोगा २ । भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा ३ । इमं च मे दुक्खं न चिरकालोवट्ठाइ भविस्सइ ४ । ओमजणपुरक्कारे ५। वंतस्स य पडियाइयणं ६ । अहरगइवासोवसंपया ७। दुल्लभे खलु भो गिहीणं धम्मे गिहवासमझे वसंताणं ८। आयंके से वहाय होइ ९ । संकप्पे से वहाय होइ १० । सोवक्केसे गिहवासे, निरुवक्केसे परियाए ११ । बंधे गिहवासे, मोक्खे परियाए १२ । सावज्जे गिहवासे, अणवज्जे परियाए १३ । बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४ । पत्तेयं पुण्ण-पावं १५ । अणिच्चे खलु भो ! मणुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६ । बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं १७। पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुव्विं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं वेयइत्ता मोक्खो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता, अट्ठारसमं पयं भवइ १८॥१॥ ५४३. भवइ य एत्थ सिलोगो जया य चयइ धम्म अणज्जो भोगकारणा। से तत्थ मुच्छिए बाले आयइं नावबुज्झई ।।२।। ५४४. जया ओहाविओ
होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्मपरिब्भट्ठोस पच्छा परितप्पई ॥३२॥ ५४५. जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पई ॐ ॥४॥ ५४६. जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥५॥ ५४७. जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्टि व्व
कव्वडे छूढो स पच्छा परितप्पई ।।६।। ५४८. जया य थेरओ होइ समइक्वंतजोव्वणो। मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्पई ||७|| जया य कुकुडुंबस्स कुतत्तीहिं विहम्मई। हत्थी व बंधणे बद्धो स पच्छा परितप्पई। ५४९. पुत्त-दारपरिकिण्णो मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पई ||८||
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Rox99555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-
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