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________________ 108. | अध्यात्मसार (हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या सहित) प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 109. अनुभूति और दर्शन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 110. सर्वसिद्धान्त प्रवेशक प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर 111. विद्याचन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दीग्रन्थ मोहनखेड़ा जैनतीर्थ इनके अतिरिक्त, डॉ. सागरमल जैन की जो 43 कृतियाँ हैं, उनका सम्पादन भी उन्होंने स्वयं किया है, इस प्रकार उनके सम्पादित ग्रन्थ 155 से भी अधिक हैं। साथ ही, आप Encycleapedia of Jaina Studies, जो सात खण्डों में प्रकाशित हो रहा है और जिसका प्रथम खण्ड प्रकाशित हो चुका है, के भी सम्पादक हैं। डॉ. सागरमल जैन द्वारा संस्थापित प्राच्य विद्यापीठ स्थापना एवं उद्देश्य: मालव ज्योति पूज्या श्रीवल्लभकुँवरजी म.सा. एवं साध्वीवर्या पूज्या श्रीपानकुँवरजी म.सा. (दादीजी) की पुण्य स्मृति में एवं मरुधरमणि साध्वी पूज्या श्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. एवं साध्वीवर्या पूज्या श्री हेमप्रभाश्रीजी म. सा. की प्रेरणा से भारतीय प्राच्य विद्याओं (विशेष रुप से जैन और बौद्ध परम्पराओं) के उच्च स्तरीय अध्ययन, शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोधकार्य के साथ साथ उच्चस्तरीय अध्ययन, शिक्षण, प्रशिक्षण एवं शोधकार्य के साथ साथ भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करेन के पुनीत उद्देश्य को लेकर -दर्शनशास्त्र के आचार्य, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के भूतपूर्व निदेशक, जैन बौद्ध और हिन्दू धर्म एवं दर्शन, कला एवं संस्कृति, साहित्य इतिहास एवं पुरातत्व के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मूर्धन्य विद्वान डॉ. सागरमलजी जैन ने वाराणसी से प्रत्यागमन के पश्चात् वर्ष 1997 में अपने गृहनगर शाजापुर में प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना की, जिसे वर्ष 2000 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन (म.प्र.) द्वारा शोध संस्थान के रुप में मान्यता प्रदान की गई। उपलब्ध सुविधाएँ: पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवांचल में उज्जैन संभाग के अंतर्गत शाजापुर नगर जिला मुख्यालय है, जो देश के सभी प्रमुख नगरों व प्रदेश के महत्वपूर्ण स्थानों, जैसे नईदिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, अहमदाबाद, जयपुर, इंदौर, उज्जैन, भोपाल आदि स्थानों से रेल/बस सेवा से जुड़ा हुआ है। शाजापुर नगर से होकर गुजरने वाले आगरा-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप तथा नगर के केन्द्र से लगभग 1.5 कि.मी. दूर प्रदूषण रहित एवं सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में दुपाड़ा रोड़ पर 9000 वर्ग फीट के क्षेत्रफल में निर्मित विद्यापीठ का दो मंजिला भव्य एवं विशान एक सुसज्जित सभाकक्ष । इसके अतिरिक्त इस भवन में 700 वर्ग फीट क्षेत्राफल के 5 हॉल, भोजनशाला, दो अतिथि कक्ष (प्रसाधन सहित), सेवक कक्ष तथा नित्यकर्म एवं स्नान आदि के लिये 8 प्रसाधन भी निर्मित है । साथ ही विद्यापीठ में डॉ. सागरमल जैन - एक परिचय : 46 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003249
Book TitleSagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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