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- डॉ. सागरमल जैन के शोधनिबन्ध
प्रो. सागरमल जैन के शोध निबन्ध दार्शनिक, परामर्श, श्रमण, जिनवाणी, विक्रम, तुलसीप्रज्ञा, अनेकांत, जिनभाषित, जैनम्श्री आदि शोध-पत्रिकाओं के साथ-साथ विभिन्न अभिनन्दन ग्रन्थों, स्मृति ग्रन्थों, स्मारिकाओं आदि में प्रकाशित होते रहे हैं। अनेक ग्रन्थों की भूमिकाएँ भी शोध-आलेख रूप रही हैं। आपके इन महत्त्वपूर्ण विकीर्ण आलेखों को एकत्रित कर प्रकाशित करने के प्रयत्न हुए, उनमें डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ (Aspects of Jainologyvol-6) और सागर जैन विद्या भारती भाग-1 से 7 तक, जो अब जैन धर्म दर्शन एवं संस्कृत के नाम से पुनः प्रकाशित है, प्रमुख हैं। इन दोनों में मिलाकर लगभग 160 आलेख हैं, इसके अतिरिक्त भी अनेक आलेख छूट गये थे, उन्हें भी www.jainaelibrary.org के और डा. साहब की स्मृति के आधार पर समाहित करने का प्रयत्न किया गया है। इन सब आधारों पर उनके शोध आलेखों की संख्या लगभग 300 के आसपास होती है। कोष्ठक () में दिये गये नम्बर www.jainaelibrary.org के संदर्भ के हैं, ज्ञातव्य है कि आपके अनेक लेख अनुवादित होकर प्रबुद्ध जीवन (गुजराती) श्रमण (बंगला) Jain studies (अंग्रेजी) में भी छपे हैं। क्र. आलेख का नाम
प्रकाशक 1. अर्द्धमागधी भाषा का उद्भव एवं विकास सुमनमुनि अमृतमहोत्सव ग्रन्थ, चेन्नई 2. अद्वैतवाद में आचार दर्शन की सम्भावना जैन| सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. __ दृष्टि में समीक्षा (210030)
वाराणसी 3. अध्यात्म और विज्ञान (210030) | सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि.
वाराणसी 4. अध्यात्म बनाम भौतिकवाद
श्रमण, अप्रेल 1990 5. अर्धमागधी आगम साहित्य : एक विमर्श
(210062) 6. अर्धमागधी आगम साहित्य में समाधिमरण की | श्रमण, 1994
अवधारणा 7. अशोक के अभिलेखा की भाषा मागधी या | सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. शौरसेनी (210128)
| वाराणसी 8. अशोक के अभिलेखा की भाषा मागधी या | सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. शौरसेनी (210128)
| वाराणसी
डॉ. सागरमल जैन - एक परिचय : 26
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