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होना । (22). अयोग्य देश और अयोग्य काल में गमन न करना । ( 23 ). देश, काल, वातावरण और स्वकीय सामर्थ्य का विचार करके ही कोई कार्य प्रारम्भ करना । (24). आचारवृद्ध और ज्ञानवृद्ध पुरूषों को अपने घर आमन्त्रित करना, आदरपूर्वक बिठलाना, सम्मानित करना और उनकी यथोचित सेवा करना । ( 25 ) . माता-पिता, पत्नी, पुत्रपुत्री आदि आश्रितों का यथायोग्य भरण-पोषण करना, उनके विकास में सहायक बनना । ( 26 ). दीर्घदर्शी होना, किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने के पूर्व ही उसके गुणावगुण पर विचार कर लेना । ( 27 ). विवेक शील होना। जिसमें हित-अहित, कृत्य - अकृत्य का विवेक नहीं होता, उस पशु के समान पुरुष को अन्त में पश्चात्ताप करना पड़ता है । ( 28 ) . कृतज्ञ होना । उपकारी के उपकार को विस्मरण कर देना उचित नहीं । ( 29 ). अहंकार से बचकर विनम्र होना । ( 30 ). लज्जाशील होना । ( 31 ) . करुणाशील होना 1 ( 32 ) . सौम्य होना । ( 33 ). यथाशक्ति परोपकार करना । ( 34 ) . काम, क्रोध, मोह, मद, और मात्सर्य, इन आन्तरिक रिपुओं से बचने का प्रयत्न करना और ( 35 ) . इन्द्रियों को उच्छृंखल न होने देना । इन्द्रियविजेता गृहस्थ ही धर्म की आराधना करने की पात्रता
प्राप्त करता है ।
आचार्य नेमिचन्द्र ने प्रवचनसारोद्धार में भिन्न रूप से श्रावक के 21 गुणों का उल्लेख किया हैं और यह माना हैं कि इन 21 गुणों को धारण करने वाला व्यक्ति ही अणुव्रतों की साधना का पात्र होता हैं। आचार्य द्वारा निर्देशित श्रावक के 21 गुण निम्न हैं: - ( 1 ) अक्षुद्रपन ( विशाल हृदयता ), ( 2 ). स्वस्थता, ( 3 ). सौम्यता, ( 4 ). लोकप्रियता, ( 5 ). अक्रूरता, (6) पापभीरूता, (7). अशठता, ( 8 ). सुदक्षता ( दानशील ), ( 9 ). लज्जाशीलता, ( 10 ) . दयालुता, ( 11 ). गुणानुराग, ( 12 ) . प्रियसम्भाषण एवं सुपक्षयुक्त, ( 16 ). नम्रता, ( 17 ). विशेषज्ञता, ( 18 ). वृद्धानुगामी, ( 19 ) . कृतज्ञ, ( 20 ). परहितकारी (परोपकारी) और ( 21 ). लब्धलक्ष्य (जीवन के साध्य का ज्ञाता) ।
पंड़ित आशधरजी ने अपने ग्रंथ सागार - धर्मामृत में निम्न 17 गुणों का निर्देश किया हैं - ( 1 ) . न्यायपूर्वक धन का अर्जन करने वाला, (2). गुणीजनों को मानने वाला, (3). सत्यभाषी, (4). धर्म, अर्थ और काम (त्रिवर्ग) का परस्पर विरोधरहित सेवन करने वाला, ( 5 ). योग्य स्त्री, ( 6 ). योग्य स्थान (मुहल्ला ), ( 7 ). योग्य मकान, (8). लज्जाशील, (9). योग्य आहार, ( 10 ) . योग्य आचरण, ( 11 ). श्रेष्ठ पुरूषों की संगति, (12). बुद्धिमान्, ( 13 ). कृतज्ञ, ( 14 ) जितेन्द्रिय, ( 15 ). धर्मोपदेश श्रवण
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श्रावकधर्म और उसकी प्रासंगिता : 18
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