________________
के अभाव में सम्यक् चारित्र नहीं होता। भक्तपरिज्ञा में कहा गया है कि 'दर्शन से भ्रष्ट (पतित) ही वास्तविक रूप में भ्रष्ट है, चारित्र से भ्रष्ट, भ्रष्ट नहीं है क्योंकि जो दर्शन से युक्त है, वह संसार में अधिक परिभ्रमण नहीं करता, जबकि दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति संसार से मुक्त नहीं होता है।२५ कदाचित् चारित्र से रहित सिद्ध हो भी जावे लेकिन दर्शन से रहित कभी भी मुक्त नहीं होता। वस्तुत: दृष्टिकोण या श्रद्धा ही एक तत्त्व है, जो व्यक्ति के ज्ञान और आचरण को सही दिशा निर्देश कर सकता है। आचार्य भद्रबाहु आचारांग नियुक्ति में कहते हैं कि सम्यक् दृष्टि से ही तप, ज्ञान और सदाचरण सफल होते हैं।२६
जहां तक ज्ञान और चारित्र का सम्बन्ध है, जैन विचारकों ने चारित्र को ज्ञान के बाद ही स्थान दिया है। उत्तराध्ययनसूत्र में यही बताया गया है कि सम्यक् ज्ञान के अभाव में सदाचरण नहीं होता। इस प्रकार जैन दर्शन में आचरण के पूर्व सम्यक् ज्ञान का होना आवश्यक है फिर भी वे यह स्वीकार नहीं करते हैं कि अकेला ज्ञान ही मुक्ति का साधन हो सकता है। महावीर ने ज्ञान और आचरण दोनों से समन्वित साधना पथ का उपदेश दिया है। सूत्रकृतांग में महावीर कहते है कि 'मनुष्य चाहे वह ब्राह्मण हो, भिक्षुक हो अथवा अनेक शास्त्रों का जानकार हो यदि उसका आचरण अच्छा नहीं है, तो वह अपने कृत्य कर्मों के कारण दुःखी ही होगा' २७। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि अनेक भाषाओं एवम् शास्त्रों का ज्ञान आत्मा को शरणभूत नहीं होता। दुराचरण में अनुरक्त अपने आप को पंडित मानने वाले लोग वस्तुत: मूर्ख ही है। वे केवल वचनों से ही अपनी आत्मा को आश्वासन देते हैं।२८ आवश्यक नियुक्ति में ज्ञान और आचरण के पारस्परिक सम्बन्ध का विवेचन अत्यंत विस्तृत रूप से किया गया है। आचार्य भद्रबाहु कहते हैं कि 'आचरणविहीन अनेक शास्त्रों के ज्ञाता भी संसार समुद्र से पार नहीं होते। ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक सम्बन्ध को लोक प्रसिद्ध अंध-पंगु न्याय के आधार पर स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चलता है या अकेला अंधा अथवा अकेला पंगु इच्छित साध्य को नहीं पहुँचते वैसे ही मात्र क्रिया या मात्र ज्ञान से मुक्ति नहीं होती, अपितु दोनों के सहयोग से ही मुक्ति होती है।२९ जैन पर्वो की आध्यात्मिक प्रकृति
न केवल जैन साधना-पद्धति की प्रकृति ही अध्यात्मवादी है अपितु जैन पर्व भी
जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : १२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org