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________________ के द्वारा मान्य ग्रन्थों में भी अपवादरूप से मुनि के वस्त्र ग्रहण करने का विधान है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि अचेलता और पूर्ण अपरिग्रह का समर्थक दिगम्बर मुनि वर्ग भी परिस्थितिवश परिग्रह के पंक में फँस गया। चौथी शताब्दी के पश्चात् से अधिकांश दिगम्बर मुनि न केवल जिनालयों में निवास करने लगे अपितु अपने नाम से जमीन आदि का दान प्राप्त करने लगे - और वस्त्र धारण कर राजसभाओं में जाने लगे। इन्हीं से दिगम्बर सम्प्रदाय में भट्टारकों की परम्परा का विकास हुआ है। मध्ययुग में इन भट्टारकों का ही सर्वत्र प्रभाव था और अचेलक दिगम्बर मुनि प्राय: विलुप्त ही हो गये थे। उनकी उपस्थिति के कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होते हैं। दिगम्बरत्व का समर्थन तो बराबर बना रहा किन्तु व्यवहार में उसका प्रचलन नहीं रह सका। वस्तुत: जिन-मुद्रा को धारण करना सहज नहीं है। आज से 40-50 वर्ष पूर्व तक सम्पूर्ण भारत में दिगम्बर मुनियों की संख्या दस भी नहीं थी। वर्तमान नग्न मुनियों की परम्परा का प्रारम्भ 100 वर्ष से अधिक पुराना नहीं है वस्तुत: साधना एवं तप-त्याग के ऐसे उच्चतम आदर्श कभी लोक व्यवहार्य नहीं रहे है। मनुष्य चाहे अपनी सुविधाभोगी वृत्ति के कारण हो अथवा उनकी अव्यवहार्यता के कारण हो, उनसे नीचे अवश्य उतरा है। श्वेताम्बर मुनिवर्ग तो आगमोक्त मुनि आचार के शिखर से धीरे-धीरे काफी नीचे उतर आया है, किन्तु दिगम्बर मुनि भी अनेक बातों मे उस ऊँचाई पर स्थित नहीं रह सके, उन्हें भी नीचे उतरना पड़ा है। वस्तुत: यह सब हमें यह बताता है कि मुनिधर्म की साधना के क्षेत्र में कुछ स्तर और उनके आरोहण का क्रम स्वीकार करना आवश्यक है । मुनि की निर्वस्त्रता की पोषक दिगम्बर परम्परा भी ऐलक एवं क्षुल्लक के रूप में दो वर्गों को स्वीकार करती है जो केवल वस्त्र के अतिरिक्त अन्य आचार-नियमों का पालन करने में दिगम्बर मुनि के समान ही होते हैं और दिगम्बर समाज में उनकी मुनिवत् प्रतिष्ठा भी होती है। विवाद का प्रश्न मात्र इतना है कि उन्हें उच्च श्रेणी का गृहस्थ माना जाये या प्राथमिक श्रेणी का मुनि । निवस्त्रता के आत्यान्तिक आग्रह के कारण दिगम्बर परम्परा उन्हें मुनि मानने को तैयार नहीं होती- किन्तु यदि तटस्थ भाव से देखें तो उनके लिए क्षुल्लक' शब्द का प्रयोग स्वयं इस बात को सूचित करता है कि वे मुनियों के वर्ग के सदस्य हैं । क्षुल्लक शब्द का अर्थ छोटा' है, चूँकि वे मुनि जीवन की साधना के प्राथमिक स्तर पर हैं, अत: उन्हें क्षुल्लक कहा जाता है। क्षुल्लक शब्द छोटे मुनि का सूचक है, छोटे गृहस्थ का नहीं। श्वे. मान्य आगम उत्तराध्ययन में एक क्षुल्लकाध्ययन नाम से जो अध्याय है, वह जैन एकता का प्रश्न : १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003245
Book TitleJain Ekta ka Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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