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________________ होने में समय लगता है, किन्तु जागृत होने पर चालना करने से बढ़ती जाती है और अधिक स्थायी होती हैं । जैनाचार्यों का यह कथन एक मनोवैज्ञानिक सत्य लिए हुए है । यद्यपि लिंग और वेद अर्थात् शारीरिक संरचना और तत्सम्बन्धी कामवासना सहगामी माने गये हैं, फिर भी सामान्यतया जहाँ लिंग शरीर पर्यन्त रहता हैं, वहाँ वेद ( कामवासना) आध्यात्मिक विकास की एक विशेष अवस्था में समाप्त हो जाता है।' जैन कर्मसिद्धान्त में लिंग का कारण नामकर्म (शारीरिक संरचना के कारक तत्व) और वेद का कारण मोहनीयकर्म (मनोवृत्तियाँ) माना गया है।' इस प्रकार लिंग, शारीरिक संरचना का और वेद मनोवैज्ञानिक स्वभाव और वासना का सूचक है तथा शारीरिक परिवर्तन से लिंग में और मनोभावों के परिवर्तन से वेद में परिवर्तन सम्भव हैं । निशीथचूर्णि ( गाथा 359 ) के अनुसार लिंग परिवर्तन से वेद (वासना) में भी परिवर्तन हो जाता है इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण कथा द्रष्टव्य ह। जिसमें शारीरिक संरचना और स्वभाव की दृष्टि से स्त्रीत्व हो, उसे ही स्त्री कहा जाता है । सूत्रकृतांग नियुक्ति में स्त्रीत्व के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रजनन, भोग, गुण और भाव ये दस निक्षेप या आधार माने गये हैं, अर्थात् किसी वस्तु के स्त्री कहे के लिए उसे निम्न एक या एकाधिक लक्षणों से युक्त होना आवश्यक हैं। यथा (1) स्त्रीवाचक नाम से युक्त होना जैसे- रमा, श्यामा आदि । (2) स्त्री रूप में स्थापित होना जैसे - शीतला आदि की स्त्री आकृति से युक्त या रहित प्रतिमा । कर्म, ( 3 ) द्रव्य - अर्थात् शारीरिक रचना का स्त्री रूप में होना । ( 4 ) क्षेत्र - देश विशेष की परम्परानुसार स्त्री की वेशभूषा से युक्त होने पर उस देश में उसे स्त्रीरूप में समझा जाता है । (5) काल - जिसने भूत, भविष्य या वर्तमान में से किसी भी काल में स्त्री - पर्याय धारण की हो, उसे उस काल की अपेक्षा से स्त्री कहा जा सकता है । (6) प्रजनन क्षमता से युक्त होना । (7) स्त्रियोचित् कार्य करना । (8) स्त्री रूप में भोगी जाने में समर्थ होना । (9) स्त्रियोचित गुण होना और (10) स्त्री सम्बन्धी वासना का होना । " Jain Education International जैन धर्म में नारी की भूमिका : 4 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003244
Book TitleJain Dharm me Nari ki Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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