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________________ दूसरी ओर इस्लाम धर्म के ही दो सम्प्रदाय शिया और सुन्नी इराक और ईरान में लड़ रहे हैं। भारत में भी कहीं हिन्दू और मुसलमानों को, तो कहीं हिन्दू और सिखों को एक दूसरे के विरूद्ध लड़ने के लिए उभाड़ा जा रहा है। अफ्रीका में काले और गोरे का संघर्ष चल रहा है, तो साम्यवादी रूस और पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका एक दूसरे को नेस्तनाबूद करने पर तुले हुए हैं। आज मानवता उस कगार पर आकर खड़ी हो गई है जहाँ से उसने यदि अपना रास्ता नहीं बदला तो उसका सर्वनाश निकट ह । 'इकबाल' स्पष्ट शब्दों में हमें चेतावनी देते हुए कहते हैं - अगर अब भी न समझोगे तो मिट जाओगे दुनिया से । तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में || विज्ञान और तकनीक की प्रगति के नाम पर हमने मानवजाति के लिए विनाश की चिता तैयार कर ली है । यदि मनुष्य की इस उन्मादी प्रवृत्ति पर कोई अंकुश नहीं लगा तो कोई भी छोटी सी घटना इस चिता को चिनगारी दे देगी और तब हम सब अपने हाथों तैयार की इस चिता में जलने को मजबूर हो जायगे । असहिष्णुता और वर्ग-विद्वेष - फिर चाहे वह धर्म के नाम पर हो, राजनीति के नाम पर हो, राष्ट्रीयता के नाम पर हो या साम्प्रदायिकता के नाम पर - हमें विनाश के गर्त की ओर ही लिये जा रहे हैं। आज की इस स्थिति के सम्बन्ध में उर्दू के शायर 'चकबस्त' ने ठीक ही कहा है मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी । तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी ।। अतः आज एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो मानवता को दुराग्रह और मतान्धता से ऊपर उठाकर सत्य को समझने के लिए एक समग्र दृष्टि दे सके, ताकि वर्गीय हितों से ऊपर उठकर समग्र मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी जा सके. धार्मिक मतान्धता क्यों ? धर्म को अंग्रेजी में 'रिलीजन' (Religion) कहा जाता है। रिलीजन शब्द रि + लीजेर से बना है । इसका शाब्दिक अर्थ होता है - फिर से जोड़ देना । धर्म मनुष्य को Jain Education International धार्मिक सहिष्णुता और जैनधर्म: 2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003243
Book TitleDharmik Sahishnuta aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2011
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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