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आचारांग सूत्र
को छोटा; सम स्थान को विषम या विषम को सम करेगा; हवा वाले स्थान को बन्द या बन्द को हवा वाला करेगा; और साधु को अकिंचन मान कर स्थानक (उपाश्रय) के भीतर और बाहर की वनस्पति कटवा कर डालेगा और उसके लिये कुछ बिछा देगा। इस लिये निर्ग्रन्थ संयमी मुनि (जात कर्म, विवाहादि आदि) पहिले किये जाने वाले या (श्राद्ध श्रादि) पीछे किये जाने वाले भोजों में भिक्षा के लिये न जावे । [१३]
और, भोज में अधिक और घृष्ट भोजन खाने-पीने से बराबर न पचने के कारण दस्त, 'उल्टी और शूल आदि रोग भी हो जाते हैं । स भव है कि वह एकत्रित हुए गृहस्थों, 'गृहस्थों की स्त्रियों
और दूसरे भिन्तुनों के साथ मदिरा पी कर वहीं नशे में चूर होकर गिर जावे और अपने स्थान पर भी न जा सके और नशे में अपना भान भूल कर स्वयं स्त्री आदि में श्रासक्त बने या मी आदि उसको लुभा कर योग्य स्थान और समय देखकर मैथुन में प्रवृत्त करावे । [१४-१५]
और सम्भव है वहां अनेक याचकों के श्राजाने के कारण भीड़ भाड़, धक्कामुक्का, मारपीट भी हो जाय; उससे हाथ-पैर में लग जावे, मार पड़े, कोई धूल डाले या पानी छींटे। वह गृहस्थ बहुत से याचकों का प्राया देखकर उनके लिये फिर भोजन तैयार करावे या वहाँ इनमें भोजन के लिये छीना-झपटी मच जावे ।
इस प्रकार भोज में भगवान ने अनेक दोष बताये हैं। इस लिये भिन्तु भोज में भिक्षा मांगने न जावे, पर थोड़ा-थोड़ा निर्दोष आहार अनेक घरों से मांग ला कर खावे। [१७]
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