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श्राचारांग सूत्र
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जगह में सबकी दृष्टि से बच कर खड़ा रहे; और मालुम होने पर कि वे सब अाहार लेकर अथवा न मिलने से वापिस चले गये हैं, तब सावधानी से भीतर जा कर भिक्षा ले । नहीं तो हो सकता है, वह गृहस्थ मुनि को श्राया देख कर उन सबको अलग करके अथवा उसके लिये फिर भोजन तैयार करके उसको श्राहार दे; इस लिये साधु ऐसा न करे। [ २६-३० ]
भिक्षु गृहस्थ के यहां भिक्षा मांगते समय उसके दरवाजे से लग कर खड़ा न हो, उसके पानी डालने या कुल्ला करने के स्थान पर खड़ा न हो, उसके स्नान करने या मल त्याग के स्थान पर दृष्टि गिरे इस प्रकार वा उनके रास्ते में खड़ा न हो, तथा घर की खिड़कियों या कामचलाऊ श्राड़ या छिद्र अथवा पनडेरी की तरफ हाथ उठाकर या इशारा करके ऊंचा-नीचा हो कर न देखे। वह गृहस्थ से (ऐसा-ऐसा दो) अंगुली बता कर न मांगे। उसको इशारा कर, धमका कर, खुजला कर या नमस्कार करके कुछ नहीं मांगना चाहिये और यदि वह कुछ न दे तो भी कठोर वचन नहीं कहना चाहिये । [३२]
भिक्षा मांगने कब न जावे ? गृहस्थ के घर भिक्षा मांगने जाने पर मालुम हो कि अभी गायें दोही जा रही हैं, भोजन तैयार हो रहा है और दूसरे याचकों को अभी कुछ नहीं दिया गया तो भीतर न जावे परन्तु किसी की दृष्टि न गिरे, इस प्रकार अलग खड़ा रहे; फिर मालुम होने पर कि गायें दोह ली गई, भोजन तैयार हो चुका और याचकों को दिया जा चुका है तब सावधानी से जावे । [ २२ ]
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